शनिवार, 12 मई 2012

यह हैं मध्यप्रदेश के एमएलए! उम्र 52 साल 15 गर्लफ्रेंड !

यह हैं मध्यप्रदेश के एमएलए! उम्र 52 साल 15 गर्लफ्रेंड !

 
Source: dainikbhaskar.com   |   Last Updated 15:15(12/05/12)
 
 
 
 
भोपाल.शेहला मसूद हत्याकांड की जांच कर रही सीबीआई ने अपनी चार्जशीट में कहा है कि हत्या में शामिल होने की आरोपी जाहिदा परवेज के ध्रुव से जिस्मानी रिश्ते थे।

'फर्स्ट पोस्ट' ने चार्जशीट के आधार पर बताया है कि जाहिदा ध्रुव नारायण के प्यार में इतनी पागल थी कि उसने अपने दफ्तर में विधायक के साथ सेक्स करते हुए अपने वीडियो भी बना लिए थे। ये वीडियो सीबीआई के कब्जे में हैं।
जांच में सीबीआई के हाथ ऐसा कोई साक्ष्य नहीं लगा है जिसके आधार पर कहा जा सके कि ध्रुवनारायण सिंह भी हत्या में शामिल हैं। लेकिन 52 वर्षीय विधायक ध्रुव नारायण सिंह के निजी जीवन को लेकर सनसनीखेज खुलासे हुए हैं। लाई डिटेक्टर टेस्ट और पूछताछ में सीबीआई को पता चला कि विधायक ध्रुव नारायण सिंह की 15 गर्लफ्रेंड रह चुकी हैं और उन्होंने सभी को सिम कार्ड और मोबाइल भी खरीद कर दिए।
इस खबर को लेकर सोशल साइट पर भी तीखी टिप्‍पणियां होने लगी हैं। पेशे से ब्रांड मैनेजर महेश मूर्ति ने ट्विटर पर लिखा- भाजपा विधायक की 15 गर्लफ्रेंड थी, प्रत्येक को उन्होंने मोबाइल और सिम कार्ड दिया। भारत की टेलीकॉम क्रांति का राज यही है।
ध्रुव नारायण शादीशुदा हैं और उनके दो बच्चे हैं। वो मध्य प्रदेश के प्रभावशाली राजनीतिक परिवार से ताल्लुक रखते हैं। उनके पिता गोविंद नारायण सिंह 1967 से 1969 तक मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री थी और फिर 1988-89 में बिहार के राज्यपाल भी रहे।
ध्रुवनारायण फिलहाल भोपाल डिविजन क्रिकेट एसोशिएसन के अध्यक्ष भी हैं। वो मध्य प्रदेश राज्य पर्यटन विकास निगम के भी अध्यक्ष हैं। हालांकि शेहला हत्याकांड में नाम आने के बाद उन्हें भाजपा के मध्य प्रदेश उपाध्यक्ष पद से हटा दिया गया था।
अब तक सीबीआई ने शेहला हत्याकांड में भाड़े के हत्यारों इरफान, शाकिब अली (डेंजर) और तबिश खान समेत जाहिदा परवेज और शबा फारूकी को चार्जशीट में आरोपी बनाया है।


शुक्रवार, 11 मई 2012

कभी ये जिलाधिकारी हुआ करते थे गाजियाबाद के

आइएएस प्रदीप शुक्ला को सात दिन की पुलिस कस्टडी में भेजा
May 10, 09:29 pm
गाजियाबाद, जागरण संवाद केंद्र
एनआरएचएम (नेशनल रूरल हेल्थ मिशन) घोटाले के प्रमुख आरोपी आइएएस अधिकारी प्रदीप शुक्ला को सीबीआइ की विशेष अदालत ने सात दिन की पुलिस कस्टडी में भेज दिया। सीबीआइ ने बृहस्पतिवार सुबह लखनऊ से प्रदीप शुक्ला को गिरफ्तार किया और शाम में गाजियाबाद स्थित सीबीआइ की विशेष अदालत में पेश किया। सीबीआइ ने प्रदीप शुक्ला के 10 दिन की पुलिस कस्टडी की मांग की थी। सीबीआइ ने कोर्ट को बताया कि प्रदीप शुक्ला जांच में सहयोग नहीं कर रहे हैं। ऐसे में मामले की आगे की जांच के लिए पुलिस कस्टडी आवश्यक है।
उत्तर प्रदेश की राजनीति में भूचाल लाने वाले एनआरएचएम घोटाले में प्रदीप शुक्ला की गिरफ्तारी को बड़ी उपलब्धि माना जा रहा है। प्रदीप शुक्ला के खिलाफ चार मुकदमे दर्ज हैं। बृहस्पतिवार को सीबीआइ ने मुकदमा संख्या-आरसी 003-2012 में प्रदीप शुक्ला को लखनऊ एयरपोर्ट से गिरफ्तार किया। प्रदीप शुक्ला पर आरोप है कि प्रमुख सचिव परिवार कल्याण के पद पर रहते हुए प्रदेश के 89 अस्पतालों के आधुनिकीकरण के काम में अनियमितता बरतीं। सीबीआइ द्वारा दर्ज एफआइआर के मुताबिक एक अस्पताल का ठेका देने के एवज में प्रदीप शुक्ला ने 25 लाख रुपये की रिश्वत ली। निर्माण का ठेका मन के मुताबिक निर्माण कंपनी पैकफेड को दिया गया। पहले ठेका यूपीपीसीएल को दिया गया था। आरोप है कि यूपीपीसीएल और पैकफेड के बीच कई बार ठेका देने और फिर उसे निरस्त करने की प्रक्रिया अपनाई गई। सीबीआइ का आरोप है कि इस मामले की जांच में प्रदीप शुक्ला सहयोग नहीं कर रहे थे। गाजियाबाद स्थित सीबीआइ की विशेष अदालत में बृहस्पतिवार की शाम प्रदीप शुक्ला को पेश किया गया। सीबीआइ और बचाव पक्ष की दलीलें सुनने के बाद जज डॉ. एके सिंह ने प्रदीप शुक्ला को 7 दिनों की पुलिस कस्टडी में भेज दिया। प्रदीप शुक्ला के वकील जेपी शर्मा ने बताया कि प्रदीप शुक्ला जांच में लगातार सहयोग कर रहे थे। वह अब तक 17 बार सीबीआइ के समक्ष पेश हो चुके हैं। कोर्ट में प्रदीप शुक्ला ने स्वयं भी गिरफ्तारी पर विरोध जताया। जेपी शर्मा ने बताया कि कोर्ट ने प्रदीप शुक्ला को 17 मई की दोपहर 12 बजे तक के लिए पुलिस कस्टडी में भेजा है।

गुरुवार, 10 मई 2012

ठाकरे साहब, हम हिंदीवालों से सीखिए


ठाकरे साहब, हम हिंदीवालों से सीखिए

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अपने धमकी भरे अंदाज को कायम रखते हुए राज ठाकरे ने कदम वापस खींच लिए हैं और मुंबई में बिहार दिवस के आयोजन में अटकाए जा रहे रोड़े फिलहाल दूर हो गए हैं। तो मान लें कि यह एक अफसोसजनक फसाना था, जो खत्म हो गया? यह जल्दबाजी होगी।
पहले मौजूदा विवाद की बात। राज ठाकरे अपने चिर-परिचित अंदाज में जब तड़क-भड़क रहे थे, तब भी बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार शांत और सुस्थिर थे। तय था कि वह मुंबई जाएंगे। कहने की जरूरत नहीं कि कद के मामले में नीतीश कुमार और राज ठाकरे में कोई समानता नहीं है। इस जुबानी जंग ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि यदि कोई ‘बड़ा’ होता है, तो क्यों होता है?

यह विवाद भले ही ठंडा पड़ गया हो, पर महाराष्ट्र के अंदर जो घटित हो रहा है, वह चिंताजनक है। कुछ महीने पहले तीन-चार दिन वहां रहने का मौका मिला था और उस दौरान कई ऐसे अनुभवों से सामना हुआ, जो चौंकाते थे। मसलन, शिरडी के रास्ते में एक बड़े से रेस्तरां पर हम लोग खाना खाने के लिए रुके। उसका मालिक बाहर ही खड़ा हुआ था और मुख्य दरवाजा किसी वजह से बंद था। मैंने उससे हिंदी में अंदर जाने के लिए रास्ता पूछा। उसने ठेठ मराठी में जवाब दिया, जो समझ से परे था। बात समझते देर न लगी। इस बार मेरा सवाल अंग्रेजी में था। निखालिस इंग्लिश में उसका उत्तर भी मिला। लौटते वक्त वह फिर दरवाजे पर टकरा गया। मैंने और मेरी पत्नी ने रुककर उसके रेस्तरां की साज-सज्जा और भोजन की तारीफ की। हम इस बार हिंदी में बोल रहे थे और उसने भी हिन्दुस्तानी में जवाब दिया, ‘शुक्रिया।’

मैंने बिना चौंके उससे अगला सवाल किया कि हाईवे पर महाराष्ट्र में अच्छे रेस्तरां मिलते हैं, पर हिंदी प्रदेशों में ऐसा क्यों नहीं है? अगले दो-ढाई मिनट की बातचीत हिंदी में ही हुई। मतलब साफ है कि जब उस शख्स को अपनी प्रशंसा या स्वार्थ की किसी बात से वास्ता पड़ा, तो वह हिंदी में बोलने लगा। इससे कुछ मिनट पहले तक उसके लिए यह भाषा बेगानी थी। मुंबई की गलियों और सड़कों पर भी यह अजनबीपन दिखने लगा है। सपनों के इस शहर में आते-जाते तीन दशक होने को आए। पहले जो लोग मुंबइया हिंदी बोलते थे, वे अब मराठी बोलते हैं। मुंबई, पुणे और नागपुर जैसे शहर अपने मिजाज से मेट्रोपॉलिटन हैं। वहां इस तरह का व्यवहार अखरता है।
ऐसा नहीं है कि यह ‘छुआछूत’ सिर्फ एक खास तबके के लोगों को लगी हो। पुणे के एक पंचतारा होटल में तीन-चार साल पहले एक अजीब अनुभव हुआ था। हमने टेबल पहले से रिजर्व करा रखी थी। जब निर्धारित समय पर उस रेस्तरां में पहुंचे, तो उस पर कुछ और लोगों का कब्जा था। जब विरोध जताया, तो वहां मौजूद कर्मचारियों ने सफाई देने की बजाय उल्टा सवाल दाग दिया कि क्या आप लोग यूपी या बिहार से हैं? पंचतारा होटलों में आमतौर पर अंग्रेजी बोली जाती है, पर यह सवाल हिंदी में आया था। हालांकि, हमने प्रतिरोध अंग्रेजी में जताया था। सड़क के किनारे का वह रेस्तरां रहा हो या पंचतारा होटल का, दोनों में एक अजीब साम्य दिखा- हिंदी और हिंदीभाषियों के प्रति अलगाव का भाव।

भारत में और कहीं हो या न हो, पर होटल इंडस्ट्री अब भी ‘अतिथि देवो भव:’ की परंपरा में यकीन करती है। यह तिरस्कार अचंभे में डालने वाला था। उसी समय यह सवाल दिमाग में तैरने लगा कि क्या बाल ठाकरे ने अपने शुरुआती दिनों में जहर का जो बीज बोया था, उसकी फसल लहलहाने लगी है? याद कीजिए। एक समय था, जब आप तमिलनाडु में हिंदी में बात करते थे, तो अपमानित होते थे। अब चेन्नई जाता हूं, तो उतनी ज्यादा दिक्कत नहीं होती। वहां के लोगों से जब इस बारे में पूछा, तो उन्होंने बताया कि हिंदी सिनेमा ने इसमें बहुत बड़ा योगदान अदा किया है, फिर उदारीकरण के इस दौर में लोग अपने कामकाज के सिलसिले में बहुत यात्राएं करने लगे हैं। इसने भी भाषायी कटुताओं को कम करने में मदद की है।

कमाल की बात है! मुंबई हिंदी फिल्मों का स्थायी पता है। वहां की फिल्मों ने दक्षिण के लोगों का मानस बदलने में सहायता की, पर दीपक तले इतना अंधेरा पसर जाएगा, इसकी उम्मीद किसी को नहीं थी। कहने की जरूरत नहीं कि हिंदी-भाषियों के बिना मुंबई और महाराष्ट्र की कल्पना ही नहीं की जा सकती। याद रखने की बात है कि हिंदी पत्रकारिता और भाषा में मराठीभाषी संपादकों का बहुत बड़ा योगदान है। बाबूराव विष्णु पराड़कर, लक्ष्मीनारायण गर्दे या मनोहर खाडिलकर ने पत्रकारिता करने के लिए महाराष्ट्र नहीं, वाराणसी को चुना था। आप में से बहुतों को शायद मालूम नहीं होगा कि ‘राष्ट्रपति’ शब्द पराड़कर जी की मेधा की उपज है। यही नहीं, आज जब हम भद्रता के साथ ‘सुश्री’ या ‘सर्वश्री’ जैसे शब्दों का प्रयोग करते हैं, तो जानते भी नहीं कि उन्होंने इसका सबसे पहले प्रयोग किया था। प्रसंगवश एक बात और बता दूं कि 20वीं सदी के शुरुआती दिनों में जब अंग्रेजों से लड़ने के लिए ‘आज’ को प्रकाशित करने की बात हुई, तो बाबूराव विष्णु पराड़कर दिशा-निर्देशन लेने के लिए लोकमान्य तिलक के पास पुणे गए थे। यह थी हमारी राष्ट्रीयता और इसी ने हमें उन हुक्मरानों पर जीत दिलाई थी, जिनकी हुकूमत में सूरज कभी डूबता नहीं था।

अपना एक और अनुभव आपके साथ साझा करना चाहता हूं। 1980 में जब मैंने सक्रिय पत्रकारिता शुरू की, तो मेरे पहले संपादक विद्या भास्कर थे। विद्या भास्कर मूलत: तेलुगूभाषी थे, पर उनके हिंदी ज्ञान का लोहा बड़े-बड़े मानते थे। मैं उन्हें भाषायी शुद्धता का ‘आखिरी मुगल’ मानता हूं और बड़े गर्व से याद करता हूं उन दिनों को, जब हम जैसे नौजवान विनम्र भाव से उनसे कुछ हासिल किया करते थे।
मुझे गर्व है कि मैं काशी में जन्मा। आज भी उस छोटे से शहर में हिन्दुस्तान के कोने-कोने से आए विभिन्न जाति, धर्म और मूल के लोग स्थायी भाव से रहते हैं। वाराणसी महानगर नहीं है, पर संसार के किसी भी बड़े महानगर से अच्छी उसकी संस्कृति है, क्योंकि यह शहर साझा करना जानता है। यही नहीं, आप हिंदीभाषी प्रदेश के चाहे जिस शहर में चले जाएं, कोई आपके हकों पर सिर्फ इसलिए चोट नहीं पहुंचाएगा कि आपकी भाषा उसकी बोलचाल से जुदा है। अगर हिंदी प्रदेश दूसरे भाषा-भाषियों को सिर पर बिठाते हैं, तो बदले में उन्हें तिरस्कार क्यों मिलता है?
कल्पना कीजिए कि पराड़कर जी के समय में कोई राज ठाकरे काशी में हुआ होता तो? ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति वाले अंग्रेज तो उसे हाथों-हाथ ले लेते, पर हमारे यहां ठाकरे नहीं जनमते। क्यों नहीं जनमते? इस सवाल पर अगर ठाकरे परिवार गौर करे, तो यकीनन वे महाराष्ट्र के निर्माण में सार्थक योगदान कर पाएंगे।

क्या अभिव्यक्ति की आज़ादी भी छीन लेगी जेल.


आरुषि मर्डर मिस्ट्री: ए स्टोरी बाई एन अनफॉरच्युनेट मदर

गाजियाबाद/अमर उजाला ब्यूरो
Story Update : Thursday, May 10, 2012    12:10 AM
Aarushi Murder Mystery A Story by An unforchunate Mother
जिस मां के दामन पर फूल सी बेटी के खून के छींटे हैं, वही उसके कत्ल की कहानी लिख रही है। गाजियाबाद जेल में बंद नोएडा की डॉ. नूपुर तलवार ने चुपके-चुपके आरुषि मर्डर केस को किताब में समेटने की ठानी है। वह आरुषि मर्डर मिस्ट्री की तुलना डेथ स्टोरी ऑफ डायना से कर रही हैं।

संभावित किताब को उसने नाम दिया है-ए स्टोरी बाई एन अनफॉरच्युनेट मदर। जब तक जेल प्रशासन को पता लगा, नूपुर 17 पन्ने लिख भी चुकी हैं। फिलहाल जेल प्रशासन ने कोर्ट की अनुमति जरूरी बताकर नूपुर के किताब लिखने पर रोक लगा दी है।

पति डॉ. राजेश तलवार के साथ नूपुर पर भी बेटी और नौकर हेमराज के कत्ल के आरोप हैं। नूपुर 3 मई से डासना जेल में बंद हैं। बुधवार सुबह जब नूपुर को जेल से पेशी के लिए कोर्ट लाने की तैयारी चल रही थी तो वे अपनी बैरक में हाथ से लिखे कुछ कागज समेटती नजर आईं।

अंग्रेजी में लिखे पन्ने भी एक-दो नहीं, पूरे 17 । जेल अधीक्षक ने पूछा तो कहने लगीं- पूरी दुनिया में चर्चित हो चुके आरुषि कांड की मिस्ट्री का ‘सच’ सामने लाना चाहती हूं। आरुषि की मौत को उसने राजकुमारी डायना समेत विश्व की टॉप टेन डेथ स्टोरी में शुमार किया। बोलीं, आरुषि मर्डर मिस्ट्री पर किताब लिख रही हूं।

जेल सूत्रों के मुताबिक, नूपुर बैरक में बंद अन्य महिला बंदियों से ही कागज-कलम लेकर लिखने में लगी हैं। कहानी में वह पति राजेश तलवार से लेकर हर उस शख्स को शामिल करने जा रही हैं, जिसका नाम आरुषि कांड से किसी ने किसी रूप में जुड़ा रहा है। नूपुर किताब के जरिए कौन सा ‘सच’ सामने लाना चाहती हैं, इस पर हर किसी की निगाहें हैं।

जेल प्रशासन ने रोके नूपुर के हाथ
जेल प्रशासन से न तो नूपुर ने किताब लिखने के लिए कोई अनुमति मांगी है और न ही जेल प्रशासन ने उसे लेखन सामग्री उपलब्ध कराई है। नूपुर से कहा गया है कि किताब लिखने के लिए उसे पहले कोर्ट से अनुमति लेनी होगी। फिलहाल जेल प्रशासन ने उसके किताब लिखने पर पाबंदी लगा दी है।--डॉ. वीरेश राज शर्मा, जेल अधीक्षक गाजियाबाद

दिल्ली में मायावती के चार बंगले, सभी में अवैध निर्माण


दिल्ली में मायावती के चार बंगले, सभी में अवैध निर्माण

नई दिल्ली/अमर उजाला ब्यूरो
Story Update : Thursday, May 10, 2012    12:08 AM
Mayawati has four bungalows in Delhi
बसपा अध्यक्ष व उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती के नाम पर केंद्र सरकार ने चार बंगले आवंटित किए हैं। सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत मांगी गई जानकारी में कहा गया है कि बड़े भूभाग में बने इन बंगलों में मायावती ने अवैध निर्माण कराया। ऐसे निर्माण को रोकने के लिए केंद्रीय लोक निर्माण विभाग ने कार्रवाई करनी चाही, लेकिन वह सफल नहीं हो सका।

आरटीआई से मिली जानकारी के अनुसार, गुरुद्वारा रकाबगंज रोड स्थित बंगला संख्या 4, 12, 14 और 16 मायावती के नाम पर आवंटित हैं। इनमें से तीन बीएसपी के अध्यक्ष और चौथा बहुजन प्रेरणा ट्रस्ट के नाम पर है।
आरटीआई कार्यकर्ता सुभाष चंद्र अग्रवाल को केंद्रीय लोक निर्माण विभाग (सीपीडब्ल्यूडी) ने यह जानकारी उपलब्ध कराई है। 2 मई 2012 को भेजे गए आरटीआई के जवाब में कहा गया है कि बीएसपी की राष्ट्रीय अध्यक्ष के नाम पर आवंटित गुरुद्वारा रकाबगंज स्थित बंगला संख्या चार में चारदीवारी तोड़कर अवैध निर्माण किया गया है। साथ ही मुख्यद्वार के पिछले हिस्से को तोड़कर तीन-चार कमरे का निर्माण किया गया है।

बंगले के लॉन की दीवार तोड़कर पिछले हिस्से में पार्क बनाए गए हैं। अवैध निर्माण के कारण बंगले में 145 वर्गमीटर क्षेत्र बढ़ गया है। बंगला संख्या 14 में 197.4 वर्गमीटर अवैध निर्माण किया गया है, जिसमें बरामदे और चार कमरों का निर्माण किया गया है।

इसी तरह बंगला संख्या 12 में फाइबर शीट के जरिये कमरे, कार्यालय, शौचालय, किचन बनाए गए हैं, जिसके कारण कुल एरिया (कवर्ड) में 238 वर्गमीटर की बढ़ोतरी हो गई है। ये बंगला बहुजन प्रेरणा ट्रस्ट के अध्यक्ष के नाम पर आवंटित है। आरटीआई के अनुसार, बंगला संख्या 16 में अवैध निर्माण के कारण क्षेत्रफल में 300.86 वर्गमीटर की बढ़ोतरी हो गई है।

सुभाष चंद्र अग्रवाल ने ‘अमर उजाला’ को बताया कि सरकार प्रत्येक बंगले का किराया 1320 रुपये प्रतिमाह वसूल करती है। किराया भी काफी दिनों से नहीं सरकार नहीं वसूल पाई है। आरटीआई में कहा गया है कि 6 फरवरी 2012 को सीपीडब्ल्यूडी ने पत्र लिखकर मायावती से अवैध निर्माण को रोकने के लिए कहा था लेकिन उसका जवाब नहीं मिला।
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यह सब समर्थन के नाम पर  हो रहा है सारे राजनीतिज्ञों की यही कहानी है , दलितों के नाम  पर सुख भोगो दलितों को बिलबिलाने दो, तभी तो दुबारा सत्ता में आओगी .