बुधवार, 21 दिसंबर 2011

मायावती की बौखलाहट

मायावती की बौखलाहट
(अमर उजाला से साभार)

बंटवारे पर केंद्र के सवालों से बिफरीं माया

लखनऊ/अमर उजाला ब्यूरो।
Story Update : Wednesday, December 21, 2011    2:50 AM
questions center on the sharing of Maya
मायावती सरकार ने उत्तर प्रदेश के विभाजन के मुद्दे पर केंद्र के सवालों को अनावश्यक ऐतराज करार दिया है। मुख्यमंत्री मायावती का कहना है कि राज्य के बंटवारे के मामले को केंद्र सरकार लटकाये रखना चाहती है। विभाजन के प्रस्ताव पर उसके द्वारा भेजा गया पत्र संवैधानिक प्रक्रिया का उल्लंघन है, इसका समुचित जवाब दिया जाएगा। अगर केंद्र सरकार वाकई में गंभीर है तो वह उप्र पुनर्गठन के संबंध में वही प्रक्रिया अपनाए जो उत्तराखंड के गठन के लिए अपनाई गई थी। अगर केंद्र सरकार से संवैधानिक व्यवस्थाओं के तहत राज्य पुनर्गठन विधेयक प्राप्त होता है तो उसे राज्य विधानमंडल के सामने रखा जाएगा।

जानबूझ कर इस प्रस्ताव को लटकाया
मायावती ने उम्मीद भी जताई कि इस मामले को लंबित रखने के इरादे से केंद्र उसके प्रस्ताव पर अनावश्यक आपत्तियां नहीं लगाएगा। यूपी के विभाजन के प्रस्ताव पर केंद्र सरकार द्वारा भेजे गए पत्र के सामने आने पर मुख्यमंत्री ने मंगलवार को अचानक अपना पक्ष रखा। कहा कि केंद्र के पत्र से लगता है कि पूर्वांचल, बुंदेलखंड, अवध प्रदेश, तथा पश्चिम प्रदेश के रूप में राज्य के पुनर्गठन संबंधी प्रस्ताव पर संविधान के हिसाब से कार्यवाही करने के बजाय, केंद्र सरकार जानबूझ कर इस प्रस्ताव को लटकाए रखना चाहती है। यदि पुनर्गठन विधेयक तैयार करने के लिए केंद्र सरकार से कोई जानकारी मांगी जाती है तो राज्य सरकार प्रशासनिक स्तर पर उसमें निश्चित रूप से सहयोग करेगी। लेकिन, केंद्र सरकार ने अपने पत्र में ऐसा कुछ नहीं कहा है कि उसको विधेयक बनाने के लिए जानकारी चाहिए।

उप्र विधानमंडल से संवाद करना चाहिए
बकौल मायावती, केंद्र सरकार को यूपी को पत्र भेजने के बजाए राष्ट्रपति के माध्यम से उप्र विधानमंडल से संवाद करना चाहिए। पत्र को मीडिया में लीक कर यह गलतफहमी पैदा करने की क ोशिश हो रही है कि प्रदेश सरकार ने राज्य के पुनर्गठन के संबंध में जो कार्रवाई की है, उसमें कमियां हैं। सच यह है कि राज्य सरकार विधानमंडल के अभिमत के बारे में कोई टिप्प्णी या स्पष्टीकरण देने के लिए संवैधानिक रूप से सक्षम नहीं है। केंद्र सरकार का पत्र राष्ट्रपति व उप्र विधानमंडल के अधिकारों के अनुरूप प्रतीत नहीं होता है। मायावती ने कहा कि कायदे से तो केंद्र को यूपी पुनर्गठन विधेयक संसद से पास कराने की पहल करनी चाहिए। लेकिन, अभी तो ऐसा कुछ नहीं किया जिससे लगे कि उसे जरूरी जानकारी चाहिए।

यह है संवैधानिक स्थिति
मायावती ने कहा कि राज्य के पुनर्गठन के संबंध में विधेयक या कानून संसद द्वारा ही पारित होता है। संविधान के अनुच्छेद-3 के तहत संसद में राज्य पुनर्गठन विधेयक प्रस्तुत करने से पहले उसके विषय में राष्ट्रपति की अनुज्ञा पाना अपेक्षित है, राष्ट्रपति ऐसी अनुज्ञा देने से पहले संबंधित राज्य विधानमंडल से अनिवार्य रूप से उसका अभिमत लेेंगे।
(दैनिक जागरण से)

उप्र के बंटवारे को लटकाना चाहता है केंद्र : मायावती

Dec 21, 01:22 am
लखनऊ, जाब्यू : राज्य विभाजन के मुद्दे पर एक बार फिर सियासी गर्मी बढ़ गई है। उप्र सरकार के प्रस्ताव को केंद्र द्वारा वापस करने से नाराज मुख्यमंत्री मायावती ने मंगलवार को प्रेस कांफ्रेंस की और आरोप लगाया कि केंद्र राज्य विभाजन को लेकर गम्भीर नहीं है। राज्य विभाजन के प्रस्ताव को लटकाने की नीयत से उसने गैर जरूरी सवाल किए हैं। मुख्यमंत्री ने केंद्र सरकार द्वारा भेजे गए पत्र को राज्यों के पुनर्गठन के विषय में संविधान की निर्धारित प्रक्रिया का उल्लघंन भी करार दिया। यह घोषणा भी की कि केंद्र का पत्र का जवाब दिया जाएगा।
पत्रकारों से बातचीत में मुख्यमंत्री ने इस बात को लेकर भी नाराजगी जताई कि केंद्र का पत्र उप्र सरकार को बाद में मिला, उससे पहले ही उसे दिल्ली में मीडिया को 'लीक' कर ऐसा माहौल बनाने की कोशिश की गई कि उप्र सरकार ने राज्य विभाजन के लिए जो कार्रवाई की है, उसमें कमियां हैं। जबकि सच्चाई यह है कि राज्य विभाजन में प्रदेश की कोई भूमिका नहीं होती। यह पहल केंद्र सरकार को ही करनी होती है। केंद्र सरकार राज्य विभाजन के लिए जब कुछ नहीं कर रही थी तो उस पर दबाव बनाने के लिए विधानमंडल से प्रस्ताव पारित करा कर केंद्र को भेजा गया गया।
मुख्यमंत्री ने कहा है कि यदि केंद्र सरकार राज्य पुनर्गठन के मामले में अभिमत चाहती है तो उसे राष्ट्रपति के माध्यम से राज्य के विधानमंडल से संवाद करना चाहिए क्योंकि राज्य सरकार विधान मंडल के अभिमत के विषय में कोई स्पष्टीकरण देने के लिए संवैधानिक रूप से सक्षम नहीं है। यह जानते हुए भी केंद्र इस प्रस्ताव पर संविधान के मुताबिक कार्रवाई करने के बजाय, जानबूझकर इसे लम्बित करने के लिए इस किस्म का पत्र भेजा है। यदि केंद्र इस मामले में गंभीर है तो उसे संविधान के प्रावधानों के मुताबिक कार्रवाई करनी चाहिए। जैसी उत्तराखंड के गठन को लेकर की गई थी। मायावती ने उम्मीद जतायी है कि केंद्र सरकार प्रदेश के पुनर्गठन संबंधी प्रस्ताव पर संविधान की व्यवस्थाओं के अनुरूप तेजी से कार्रवाई करेगी और इस मामले को लम्बित रखने के इरादे से प्रस्ताव पर अनावश्यक आपत्तियां नहीं लगाएगी।