बुधवार, 21 दिसंबर 2011

मायावती की बौखलाहट

मायावती की बौखलाहट
(अमर उजाला से साभार)

बंटवारे पर केंद्र के सवालों से बिफरीं माया

लखनऊ/अमर उजाला ब्यूरो।
Story Update : Wednesday, December 21, 2011    2:50 AM
questions center on the sharing of Maya
मायावती सरकार ने उत्तर प्रदेश के विभाजन के मुद्दे पर केंद्र के सवालों को अनावश्यक ऐतराज करार दिया है। मुख्यमंत्री मायावती का कहना है कि राज्य के बंटवारे के मामले को केंद्र सरकार लटकाये रखना चाहती है। विभाजन के प्रस्ताव पर उसके द्वारा भेजा गया पत्र संवैधानिक प्रक्रिया का उल्लंघन है, इसका समुचित जवाब दिया जाएगा। अगर केंद्र सरकार वाकई में गंभीर है तो वह उप्र पुनर्गठन के संबंध में वही प्रक्रिया अपनाए जो उत्तराखंड के गठन के लिए अपनाई गई थी। अगर केंद्र सरकार से संवैधानिक व्यवस्थाओं के तहत राज्य पुनर्गठन विधेयक प्राप्त होता है तो उसे राज्य विधानमंडल के सामने रखा जाएगा।

जानबूझ कर इस प्रस्ताव को लटकाया
मायावती ने उम्मीद भी जताई कि इस मामले को लंबित रखने के इरादे से केंद्र उसके प्रस्ताव पर अनावश्यक आपत्तियां नहीं लगाएगा। यूपी के विभाजन के प्रस्ताव पर केंद्र सरकार द्वारा भेजे गए पत्र के सामने आने पर मुख्यमंत्री ने मंगलवार को अचानक अपना पक्ष रखा। कहा कि केंद्र के पत्र से लगता है कि पूर्वांचल, बुंदेलखंड, अवध प्रदेश, तथा पश्चिम प्रदेश के रूप में राज्य के पुनर्गठन संबंधी प्रस्ताव पर संविधान के हिसाब से कार्यवाही करने के बजाय, केंद्र सरकार जानबूझ कर इस प्रस्ताव को लटकाए रखना चाहती है। यदि पुनर्गठन विधेयक तैयार करने के लिए केंद्र सरकार से कोई जानकारी मांगी जाती है तो राज्य सरकार प्रशासनिक स्तर पर उसमें निश्चित रूप से सहयोग करेगी। लेकिन, केंद्र सरकार ने अपने पत्र में ऐसा कुछ नहीं कहा है कि उसको विधेयक बनाने के लिए जानकारी चाहिए।

उप्र विधानमंडल से संवाद करना चाहिए
बकौल मायावती, केंद्र सरकार को यूपी को पत्र भेजने के बजाए राष्ट्रपति के माध्यम से उप्र विधानमंडल से संवाद करना चाहिए। पत्र को मीडिया में लीक कर यह गलतफहमी पैदा करने की क ोशिश हो रही है कि प्रदेश सरकार ने राज्य के पुनर्गठन के संबंध में जो कार्रवाई की है, उसमें कमियां हैं। सच यह है कि राज्य सरकार विधानमंडल के अभिमत के बारे में कोई टिप्प्णी या स्पष्टीकरण देने के लिए संवैधानिक रूप से सक्षम नहीं है। केंद्र सरकार का पत्र राष्ट्रपति व उप्र विधानमंडल के अधिकारों के अनुरूप प्रतीत नहीं होता है। मायावती ने कहा कि कायदे से तो केंद्र को यूपी पुनर्गठन विधेयक संसद से पास कराने की पहल करनी चाहिए। लेकिन, अभी तो ऐसा कुछ नहीं किया जिससे लगे कि उसे जरूरी जानकारी चाहिए।

यह है संवैधानिक स्थिति
मायावती ने कहा कि राज्य के पुनर्गठन के संबंध में विधेयक या कानून संसद द्वारा ही पारित होता है। संविधान के अनुच्छेद-3 के तहत संसद में राज्य पुनर्गठन विधेयक प्रस्तुत करने से पहले उसके विषय में राष्ट्रपति की अनुज्ञा पाना अपेक्षित है, राष्ट्रपति ऐसी अनुज्ञा देने से पहले संबंधित राज्य विधानमंडल से अनिवार्य रूप से उसका अभिमत लेेंगे।
(दैनिक जागरण से)

उप्र के बंटवारे को लटकाना चाहता है केंद्र : मायावती

Dec 21, 01:22 am
लखनऊ, जाब्यू : राज्य विभाजन के मुद्दे पर एक बार फिर सियासी गर्मी बढ़ गई है। उप्र सरकार के प्रस्ताव को केंद्र द्वारा वापस करने से नाराज मुख्यमंत्री मायावती ने मंगलवार को प्रेस कांफ्रेंस की और आरोप लगाया कि केंद्र राज्य विभाजन को लेकर गम्भीर नहीं है। राज्य विभाजन के प्रस्ताव को लटकाने की नीयत से उसने गैर जरूरी सवाल किए हैं। मुख्यमंत्री ने केंद्र सरकार द्वारा भेजे गए पत्र को राज्यों के पुनर्गठन के विषय में संविधान की निर्धारित प्रक्रिया का उल्लघंन भी करार दिया। यह घोषणा भी की कि केंद्र का पत्र का जवाब दिया जाएगा।
पत्रकारों से बातचीत में मुख्यमंत्री ने इस बात को लेकर भी नाराजगी जताई कि केंद्र का पत्र उप्र सरकार को बाद में मिला, उससे पहले ही उसे दिल्ली में मीडिया को 'लीक' कर ऐसा माहौल बनाने की कोशिश की गई कि उप्र सरकार ने राज्य विभाजन के लिए जो कार्रवाई की है, उसमें कमियां हैं। जबकि सच्चाई यह है कि राज्य विभाजन में प्रदेश की कोई भूमिका नहीं होती। यह पहल केंद्र सरकार को ही करनी होती है। केंद्र सरकार राज्य विभाजन के लिए जब कुछ नहीं कर रही थी तो उस पर दबाव बनाने के लिए विधानमंडल से प्रस्ताव पारित करा कर केंद्र को भेजा गया गया।
मुख्यमंत्री ने कहा है कि यदि केंद्र सरकार राज्य पुनर्गठन के मामले में अभिमत चाहती है तो उसे राष्ट्रपति के माध्यम से राज्य के विधानमंडल से संवाद करना चाहिए क्योंकि राज्य सरकार विधान मंडल के अभिमत के विषय में कोई स्पष्टीकरण देने के लिए संवैधानिक रूप से सक्षम नहीं है। यह जानते हुए भी केंद्र इस प्रस्ताव पर संविधान के मुताबिक कार्रवाई करने के बजाय, जानबूझकर इसे लम्बित करने के लिए इस किस्म का पत्र भेजा है। यदि केंद्र इस मामले में गंभीर है तो उसे संविधान के प्रावधानों के मुताबिक कार्रवाई करनी चाहिए। जैसी उत्तराखंड के गठन को लेकर की गई थी। मायावती ने उम्मीद जतायी है कि केंद्र सरकार प्रदेश के पुनर्गठन संबंधी प्रस्ताव पर संविधान की व्यवस्थाओं के अनुरूप तेजी से कार्रवाई करेगी और इस मामले को लम्बित रखने के इरादे से प्रस्ताव पर अनावश्यक आपत्तियां नहीं लगाएगी।


बुधवार, 14 दिसंबर 2011

और मुख्यमंत्री का ........................

लोकपाल के दायरे में हो प्रधानमंत्री का पद: मायावती

 मंगलवार, 13 दिसंबर, 2011 को 21:20 IST तक के समाचार
मायावती
मायावती ने प्रधानमंत्री को लोकपाल के अधीन करने की मांग की.
उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री एवं बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती ने प्रेस कांफ्रेंस करके साफ़ कर दिया कि वह प्रधानमंत्री, निचले स्तर के कर्मचारियों और सीबीआई को लोकपाल के अधीन रखने के पक्ष में हैं.
मुख्यमंत्री मायावती और उनके मंत्रिमंडल के सदस्य स्वयं भी भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों से घिरे हैं. लेकिन प्रेस कांफ्रेंस में मायावती ने भ्रष्टाचार और राजनीति के अपराधीकरण पर गंभीर चिंता प्रकट की.
मायावती ने कहा कि उत्तर प्रदेश भी भ्रष्टाचार से अछूता नहीं है, लेकिन उनके अनुसार इसके लिए पूर्ववर्ती सरकारें और दूसरे दलों से बीएसपी में आए लोग जिम्मेदार हैं.
"खासतौर से इस किस्म के लोग जो दूसरी पार्टियों को छोड़कर बीएसपी पार्टी से जुड़ने के बाद सांसद, विधायक और सरकार बनने पर मंत्री आदि बन गए हैं उन्होंने बीएसपी में आने के बावजूद गलत कार्य करना नही छोड़ा है तो उन्हें भी उनकी सरकार ने प्रदेश और जनहित में बिना हिचक जेल की सलाखों के पीछे भेजा है और कार्रवाही की है."
मायावती
उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार तथा राजनीति में अपराधीकरण को समाप्त करने के लिए उनकी सरकार को काफी मेहनत करनी पड रही है.
मायावती ने कहा, “खासतौर से इस किस्म के लोग जो दूसरी पार्टियों को छोड़कर बीएसपी पार्टी से जुड़ने के बाद सांसद, विधायक और सरकार बनने पर मंत्री आदि बन गए हैं उन्होंने बीएसपी में आने के बावजूद गलत कार्य करना नही छोड़ा है तो उन्हें भी उनकी सरकार ने प्रदेश और जनहित में बिना हिचक जेल की सलाखों के पीछे भेजा है और कार्रवाही की है.”

कांग्रेस पर हमला

मायावती ने आरोप लगाया कि कांग्रेस पार्टी भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्यवाही के लिए मजबूत तंत्र नही बनने देना चाहती , क्योंकि उनके मंत्री भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे हैं.
मायावती ने कहा कि संसद की स्थायी समिति द्वारा लोक पाल विधेयक का जो मसौदा पेश किया है वह भ्रष्टाचार को खत्म नही कर सकेगा. उन्होंने सुझाव दिया कि चपरासी से लेकर प्रधानमन्त्री तक सभी को लोकपाल के दायरे में रखना चाहिए.
मायावती ने सीबीआई को लोकपाल के नियंत्रण में लाने पर जोर देते हुए कहा कि इससे समय-समय पर केंद्र सरकारों द्वारा किये जा रहें इसके दुरूपयोग को कुछ हद तक समाप्त किया जा सकेगा.
इसके साथ ही मायावती ने इस बात पर भी जोर दिया कि लोकपाल विधेयक को तैयार करने में संविधान का पालन किया जाए और दलित तथा अन्य पिछड़े वर्गों को आरक्षण दिया जाए.
मायावती ने एक और बात ये कही कि लोकपाल विधेयक में संविधान के संघीय ढाँचे का ध्यान जरुर रखा जाए.

लोकायुक्त पर चुप्पी

"सुश्री मायावती और बसपा सरकार प्रदेश में घोर भ्रष्टाचार और राजनीतिक अपराधीकरण के लिए स्वयं पूर्ण रूप से जिम्मेदार हैं."
रीता जोशी, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष
लेकिन मायावती ने राज्यों में लोकपाल के अधिकारों पर कोई बात नही की. याद दिला दें कि उत्तर प्रदेश में लोकायुक्त बराबर ये मांग करते रहें हैं कि मुख्यमंत्री को भी उनके अधिकार क्षेत्र में रखा जाए, लेकिन मायावती ने उस पर ध्यान नही दिया.
मायावती ने प्रेस कांफ्रेंस करके यह जता दिया कि बहुजन समाज पार्टी केंद्र की कांग्रेस सरकार को भले ही बाहर से समर्थन दे रही हो पर लोकपाल के मुद्दे पर वह अन्ना हजारे और अन्य विपक्षी दलों के करीब है.
लेकिन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रीता जोशी ने मायावती के बयान पर आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा कि, “सुश्री मायावती और बसपा सरकार प्रदेश में घोर भ्रष्टाचार और राजनीतिक अपराधीकरण के लिए स्वयं पूर्ण रूप से जिम्मेदार हैं.”
डा. जोशी ने मुख्यमंत्री के बयान को गुमराह करने वाला बताया है.
भारतीय जनता पार्टी ने अपनी प्रतिक्रिया में मायावती को 'देश की सबसे भ्रष्ट व झूठ बोलने में माहिर मुख्यमंत्री बताया'.
पार्टी प्रवक्ता हरद्वार दुबे ने आज पार्टी मुख्यालय पर संवाददाताओं से बात करते हुए मायावती द्वारा कालेधन के मामले में कांग्रेस से भाजपा की मिलीभगत के आरोप को ऐतिहासिक झूठ करार दिया है.
दुबे ने कहा कि मायावती के मुंह से भ्रष्टाचार पर बोलना शोभा नहीं देता. उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री ने राष्ट्रपति के चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी का इस शर्त पर समर्थन किया था कि पहले कांग्रेस राज्यपाल के यहां ताज काडिडोर मामले की जांच को खारिज कराए.
दुबे ने कहा कि कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी ने पहले उनकी मांग को माना तथा तत्कालीन उत्तर प्रदेश के राज्यपाल ने आकण्ठ भ्रष्टाचार में फंसी मायावती के मामले को समाप्त किया.
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दूसरी ओर-

शहरी निकायों के चुनाव पर मायावती सरकार की आनाकानी

 बुधवार, 14 दिसंबर, 2011 को 18:29 IST तक के समाचार
मायावती
मायावती सरकार ने अभी तक स्थानीय निकायों के चुनाव की प्रक्रिया शुरु नहीं की है.
74वें संविधान संशोधन के जरिए स्थानीय निकायों को संवैधानिक संरक्षण दिया गया था ताकि राज्य सरकारें इनके अधिकारों का अतिक्रमण न करें और चुनाव समय पर हो सकें.
लेकिन उत्तर प्रदेश में लगभग साढ़े छह सौ स्थानीय निकायों का कार्यकाल पिछले महीने समाप्त हो गया और मायावती सरकार ने चुनाव प्रक्रिया शुरू नहीं होने दी. हाईकोर्ट ने चुनाव अधिसूचना जारी करने का आदेश दिया भी मगर राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दाखिल कर चुनाव कराने पर फिलहाल स्टे ले लिया है.
राज्य चुनाव आयोग के अधिकारियों का कहना है कि उन्होंने सितम्बर के पहले हफ्ते में ही चुनाव कार्यक्रम बनाकर राज्य सरकार को भेज दिया था.
नियमों में व्यवस्था है कि चुनाव की औपचारिक अधिसूचना राज्य सरकार जारी करेगी.

सरकार की आनाकानी

'हार का डर'

"ये चुनाव इसलिए नही कराना चाहतीं क्योंकि इस चुनाव में बहुजन समाज पार्टी कि बुरी तरह से हार होती. जब हार होती तो पोल खुलती. इसके बाद विधान सभा एके चुनाव होने थे,इससे चुनाव का संकेत आ जाता कि इनकी बुरी तरह से हार होगी. केवल इस डर से कि इनकी बुरी तरह हार होगी,इनकी पोल खुलेगी ये चुनाव नही कराना चाहती."
शिवपाल सिंह यादव, विधानसभा में विपक्ष के नेता
लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार कोई न कोई बहाना बनाकर चुनाव कार्यक्रम घोषित करने से कतरा रही थी. इसे देखते हुए कई लोग हाईकोर्ट गए और अदालत ने 31 अक्तूबर तक चुनाव अधिसूचना जारी करने को कहा. मगर राज्य सरकार ने उस पर अमल नही किया.
मुख्य बहाना ये बनाया गया कि वार्डों का आरक्षण नही हो पाया. दूसरा बहाना ये बनाया गया कि 2011 की जनगणना की आंकड़े उपलब्ध नही हैं.
लेकिन हाईकोर्ट ने ये बहाने नही माने. हाईकोर्ट ने बहुत ही कड़े शब्दों में आदेश दिया कि शहरी स्थानीय निकायों के चुनाव की अधिसूचना हर हालत में 19 दिसंबर तक जारी हो जाए.
हाईकोर्ट ने ये भी कहा कि अगर राज्य सरकार चुनाव अधिसूचना जारी नहीं करती तो ये एक प्रकार से संवैधानिक तंत्र की विफलता माना जाएगा और गवर्नर उस पर कार्रवाही कर सकते हैं.
लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार ने इससे पहले ही सुप्रीम कोर्ट में अपील कर दी. सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को राहत देते हुए दो महीने का और समय दे दिया. इस अंतरिम आदेश के मुताबिक़ राज्य सरकार को 11 फरवरी तक वार्डों का आरक्षण आदि करके अधिसूचना जारी करनी है.
लेकिन लगभग उसी समय विधानसभा चुनाव की प्रक्रिया शुरू होने की संभावना है. इसलिए अब ऐसा लगता है कि फिलहाल शहरी निकायों के चुनाव अभी नही हो पायेंगे.

प्रतिक्रिया

विधानसभा में विरोधी दल के नेता शिवपाल सिंह यादव का कहना है कि बहुजन समाज पार्टी अपनी पोल खुलने और हार के डर से नगरीय निकायों के चुनाव नही करवा रही है.
उन्होंने कहा, “ये चुनाव इसलिए नही कराना चाहतीं क्योंकि इस चुनाव में बहुजन समाज पार्टी कि बुरी तरह से हार होती. जब हार होती तो पोल खुलती. इसके बाद विधान सभा एके चुनाव होने थे, इससे चुनाव का संकेत आ जाता कि इनकी बुरी तरह से हार होगी. केवल इस डर से कि इनकी बुरी तरह हार होगी, इनकी पोल खुलेगी ये चुनाव नही कराना चाहती.”
कहना न होगा कि सत्तारूढ़ बहुजन समाज पार्टी मुख्य रूप से ग्रामीण क्षेत्रों की पार्टी है. इसीलिए बीएसपी ने साल 2006 में स्थानीय नगर निकाय चुनावों में हिस्सा ही नहीं लिया था. पिछले शहरी निकाय चुनावों में सबसे ज्यादा भारतीय जनता पार्टी और उसके बाद कांग्रेस और समाजवादी पार्टी को सफलता मिली थी.
सरकार में रहते हुए मायावती सरकार ने नियम बदल दिया था कि स्थानीय निकायों के चुनाव दलीय आधार पर न हों और मेयर तथा नगर पंचायतों के चेयरमैन के चुनाव सीधे जनता से न होकर सभासदों के ज़रिए हों.

गांवो की पार्टी

लेकिन विपक्ष ने आरोप लगाया कि मुख्यमंत्री मायावती सरकार का दबाव डालकर नगरीय निकायों पर कब्ज़ा करना चाहती है.जब मामला अदालत में गया तो अदालत ने बिना दलीय निशान चुनाव का नियम रद्द कर दिया.
प्रेक्षकों का कहना है कि बीएसपी सरकार ने पिछले पांच सालों में शहरी इलाकों में बिजली,पानी जैसी नागरिक सुविधाओं और अपराध नियंत्रण के मामले में कोई खास काम नही किया.
शहरी क्षेत्रों के मतदाताओं में जागरूकता और आक्रोश भी अधिक होता है.इसलिए मुख्यमंत्री मायावती नही चाहतीं कि विधान सभा चुनाव से ठीक पहले शहरी स्थानीय निकायों के चुनाव हों.
माया सरकार ने सरकारी अधिकारियों को इन निकायों का प्रशासक बना दिया,लेकिन हाईकोर्ट ने सरकार के इरादों पर पानी फेरते हुए कहा कि नए चुनाव होने तक पुराने मेयर अपने पद पर बने रहेंगे.

रविवार, 11 दिसंबर 2011

मायावती का कमाल

मायावती के भाई पर घोटालों के आरोप

Dec 11, 01:10 am
नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। भाजपा ने उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती को भ्रष्टाचार के कठघरे में खड़ा करते हुए आरोप लगाया कि नोएडा में भू आवंटन के बदले मिले धन को छिपाने के लिए 100 से अधिक कंपनियों का इस्तेमाल किया जा रहा हैं।
राष्ट्रीय सचिव किरीट सोमैया ने कहा कि उनके पास मायावती के रिश्तेदारों एवं दोस्तों के नाम से चल रही फर्जीवाड़े वाली 125 कंपनियों की सूची है। सोमैया ने उनके भाई आनंद कुमार से जुड़ी 25 कंपनियों के घोटालों की सूची जारी की है। इससे पहले सोमैया लखनऊ में 26 कंपनियों के नामों की सूची जारी कर चुके हैं।
सोमैया ने दावा किया कि उन्होंने प्रदेश के वरिष्ठ नेता कलराज मिश्र के साथ शनिवार को नोएडा में आनंद कुमार से जुड़ी दो ऐसी ही कंपनियों का दौरा भी किया, जहां जाकर पता चला कि उनके पते फर्जी हैं।
किरीट सोमैया ने शनिवार को कलराज मिश्र के साथ दिल्ली में आरोप लगाया कि आनंद कुमार एवं उनकी पत्नी विचित्रलता फर्जी कंपनियों के जरिए करोड़ों रुपये लूट रहे हैं। उन्होंने कहा कि मायावती के भाई व भाभी के साथ सुखदेव कुमार, दीपक बंसल और कुछ अन्य लोगों ने मिलकर 100 से ज्यादा ऐसी कंपनियां खड़ी की हैं जो फर्जीवाड़े के साथ उगाही करने में लगी हैं।
भाजपा नेताओं ने पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी में पंजीकृत मेसर्स सिवानंदा रीयल एस्टेट प्राइवेट लिमिटेड का उल्लेख किया, जिसके मालिक आनंद कुमार एवं विचित्रलता हैं। इस कंपनी की शेयर पूंजी मात्र एक लाख रुपये थी। 2007 में बनी इस कंपनी को 2010 में वीरेंद्र जैन और भूषण भारत ने 142 करोड़ रुपये में खरीदा।
सोमैया ने जानना चाहा है कि वीरेंद्र जैन एवं भूषण भारत कौन हैं और उन्होंने मायावती के भाई से इतनी भारी भरकम राशि देकर कंपनी खरीदकर किसे उपकृत किया है? उन्होंने आनंद कुमार व विचित्रलता के स्वामित्व वाली एक और कंपनी होटल लाइब्रेरी प्राइवेट लिमिटेड का उल्लेख करते हुए कहा कि कुछ लाख रुपये के कारोबार वाली इस कंपनी को वायदा कारोबार एक्सचेंज के जरिए 2010 में 30 करोड़ और 2011 में 157 करोड़ रुपये हासिल हुए। इसी तरह डीबीके इंफ्रास्ट्रक्चर प्राइवेट लिमिटेड ने वायदा बाजार एक्सचेंज से 37 करोड़ रुपए का मुनाफा दिखाया है।
आनंद कुमार और विचित्रलता से जुड़ी दो और कंपनियों का उल्लेख करते हुए किरीट ने कहा कि 700 रुपये शेयर पूंजी वाली चंबल वैली शुगर मिल्स लिमिटेड नोएडा व 200 रुपये शेयर पूंजी वाली अपर इंडिया सुगर मिल्स प्राइवेट लिमिटेड नोएडा के नाम भी फर्जीवाड़ा है। इन दोनों कंपनियों का पता ए-19, सेक्टर-10, नोएडा, उत्तर प्रदेश है। शनिवार सुबह कलराज मिश्र एवं किरीट सोमैया इस पते पर पहुंचे तो वहां पर एक कच्चा मकान मिला, जिसका मालिक कोई और था।
सोमैया ने कहा कि प्रवर्तन निदेशालय ने 2010 में नोएडा प्राधिकरण को एक पत्र लिखकर इस तरह के अवैध तरीके से हो रही उगाही पर दस्तावेज मांगे थे। प्रवर्तन निदेशालय का पत्र साफ करता है कि केंद्र को इस फर्जीवाड़े की पूरी जानकारी है। इसके बावजूद कांग्रेस मायावती सरकार का बचाव कर रही है, जिससे दोनों के बीच साठगांठ साफ हो जाती है।
कलराज मिश्र एवं किरीट सोमैया ने आरोप लगाया कि मायावती की सरकार में अकेले नोएडा में ही एक लाख करोड़ रुपये की लूट ऐसी फर्जी कंपनियों के जरिए की गई। उन्होंने मायावती के परिवार और मित्रों के नाम से की गई इस लूट की स्वतंत्र एजेंसी से व्यापक जांच की मांग की है।
उन्होंने कहा कि इन कंपनियों का उपयोग घोटालों एवं नोएडा में भूमि आवंटन से मिले धन को छिपाने और जमा करने के लिए किया जा रहा है।

रविवार, 20 नवंबर 2011

बसपा का आंतरिक भ्रष्टाचार

(अमर उजाला से साभार)

बाबू सिंह की बगावत, कहा- जान को खतरा

लखनऊ।
Story Update : Sunday, November 20, 2011    12:45 AM
मुख्यमंत्री मायावती के करीबी रहे पूर्व मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा ने अपनी ही सरकार के एक मंत्री से जान का खतरा होने की बात कह कर सनसनी फैला दी है। उन्होंने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर कहा है कि लोक निर्माण और स्वास्थ्य मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दीकी, कैबिनेट सचिव शशांक शेखर सिंह और प्रमुख सचिव (गृह) कुंवर फतेह बहादुर से उनकी जान को खतरा है।

एनआरएचएम घोटाले में भी संगीन आरोप
बसपा सरकार में परिवार कल्याण और सहकारिता मंत्री रहे बाबू सिंह कुशवाहा को दो सीएमओ की हत्या के बाद 7 अप्रैल को इस्तीफा देना पड़ा था। उन पर एनआरएचएम घोटाले में भी संगीन आरोप हैं। कुशवाहा ने यह चिट्ठी 17 नवंबर को लिखी है। विधानसभा सत्र से ठीक पहले सामने आई इस चिट्ठी में कुशवाहा ने मुख्यमंत्री से अपना दर्द बयान किया है। उन्होंने प्रधानमंत्री, राज्यपाल, सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश, हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश, सीबीआई निदेशक और प्रमुख सचिव (गृह) भारत सरकार के पास भी पत्र भेजा है।

सीएम से जान की रक्षा करने की अपील की
सीएम को लिखे पत्र में कुशवाहा ने कहा है कि 2007 में बसपा की सरकार बनने पर मुझे कैबिनेट मंत्री बनाया गया और परिवार कल्याण समेत कई विभागों का चार्ज सौंपे गए। इससे सिद्दीकी, कुछ अन्य मंत्री, कैबिनेट सचिव, प्रमुख सचिव (गृह) और कुछ अन्य प्रशासनिक अफसर मुझसे ईर्ष्या करने लगे। पूर्व मंत्री ने आगे लिखा है कि मुझे डर है कि ये ताकतवर लोग सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग करके मुझे, मेरे रिश्तेदारों और समर्थकों को फर्जी मामलों में फंसा सकते हैं। हाल ही में बांदा और झांसी में मेरे खिलाफ में घटी ताजा घटनाओं से इस बात की आशंका और बढ़ गई है। इसके साथ ही कुशवाहा ने मुख्यमंत्री से पूरे मामले पर ध्यान देने और अपनी जान की रक्षा करने की अपील की है।

कद्दावर नेताओं में होती थी गिनती
बाबू सिंह कुशवाहा की गिनती बसपा के कद्दावर नेताओं में होती रही है। इस्तीफा देने से पहले वे मुख्यमंत्री मायावती के सबसे करीबी और विश्वासपात्र माने जाते थे। बसपा में उनके दबदबे का पता इसी से चलता है कि प्रदेश में एनआरएचएम के लिए जब केंद्र से पैसा आने लगा तो उन्होंने अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर न सिर्फ परिवार कल्याण को स्वास्थ्य विभाग से अलग कराकर स्वतंत्र मंत्रालय बनवा दिया, बल्कि खुद इस विभाग की कमान अपने हाथ में ले ली। बांदा में स्थानीय राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता के चलते नसीमुद्दीन सिद्दीकी से उनका पहले से ही छत्तीस का आंकड़ा है। मुख्यमंत्री की ‘गुडबुक’ से बाबू सिंह का पत्ता साफ होने के बाद अब उनकी जगह नसीमुद्दीन ने ले ली है।

कांग्रेस में जाएंगे कुशवाहा!
बसपा से बगावत करने के बाद बाबू सिंह कुशवाहा के कांग्रेस में जाने की अटकलें शुरू हो गई हैं। राजनीतिक हलकों में यह चर्चा जोरों पर है कि कुशवाहा कांग्रेस के कुछ बड़े नेताओं के संपर्क में हैं। जल्द ही वह कांग्रेस में शामिल होने की घोषणा कर सकते हैं।

क्या लिखा चिट्ठी में
अप्रैल 2011 में मेरे मंत्री पद से इस्तीफा देते ही नसीमुद्दीन सिद्दीकी और दो आला अधिकारी मुझसे व्यक्तिगत रंजिश निकालने लगे। इन तीनों ताकतवर लोगों की दुर्भावना अब इतनी बढ़ गई है कि ये मेरे खिलाफ कोई भी साजिश रच सकते हैं। मुझे इन तीनों से जान का खतरा है।

बाबू सिंह कुशवाहा द्वारा कैबिनेट मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दीकी और आला अधिकारियों से अपनी जान का खतरा बताया जाना गलत है। कुशवाहा आय से अधिक संपत्ति के मामले में लोकायुक्त जांच में फंसे हैं। हाईकोर्ट में भी उनके खिलाफ एक याचिका दाखिल है। चारों ओर से कानून के शिकंजे में घिरे होने की वजह से वे लोगों का ध्यान हटाने के लिए ड्रामेबाजी कर रहे हैं।
-स्वामी प्रसाद मौर्य, प्रदेश बसपा अध्यक्ष
(हिंदुस्तान से साभार)

पूर्व बसपा मंत्री ने कहा, मंत्री से जान को खतरा
लखनऊ, एजेंसी
First Published:19-11-11 09:57 PM
Last Updated:20-11-11 01:32 AM
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उत्तर प्रदेश में बुहजन समाज पार्टी (बसपा) की सरकार के पूर्व मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा ने मुख्यमंत्री मायावती को लिखे पत्र में जहां कथित रूप से राज्य के शीर्ष अधिकारियों और एक मंत्री से अपनी जान को खतरा बताया है। वहीं, बसपा ने शनिवार को कुशवाहा के आरोपों का खंडन करते हुए कहा कि वह नौटंकी कर रहे हैं।
ज्ञात हो कि पूर्व परिवार कल्याण मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा ने मायावती को लिखे पत्र में कथित रूप से राज्य के लोक निर्माण मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दिकी और कैबिनेट सचिव एवं गृह सचिव से अपनी जान को खतरा होने की बात कही है।
वहीं, कुशवाहा के आरोपों का खंडन करते हुए बसपा प्रवक्ता स्वामी प्रसाद मौर्य ने एक बयान जारी कर कहा, ‘कुशवाहा के खिलाफ आय से अधिक सम्पत्ति मामले में लोकायुक्त की जांच चल रही है। ऐसा लग रहा है कि कानूनी शिकंजा कसने के बाद लोगों का ध्यान हटाने के लिए वह इस तरह की नौटंकी पर उतर आए हैं।’
कुशवाहा के कथित पत्र पर आश्चर्य प्रकट करते हुए मौर्य ने इसका खंडन किया और कहा कि उनकी जान को मंत्रिपरिषद के किसी सदस्य अथवा सरकार के किसी अधिकारी से खतरा नहीं है। मौर्य ने कहा, ‘कुशवाहा कई सालों तक मंत्री थे तब उन्हें इन लोगों से जान का खतरा क्यों नहीं था। पिछले कुछ दिनों से उन्हें अपनी जान को खतरा महसूस होने लगा है जो आश्चर्य की बात है।’
उन्होंने कहा कि कुशवाहा का कथित पत्र अभी तक मुख्यमंत्री को नहीं मिला है लेकिन यह पत्र समाचार चैनलों पर दिखाया गया जिससे साबित होता है कि कुशवाहा पेशबंदी में लगे हैं। एनएचआरएम योजना में अनियमितताओं के खुलासा के बाद कुशवाहा ने इस्तीफा दे दिया था।
(दैनिक जागरण से साभार)

बाबू सिंह कुशवाहा हुए बागी

Nov 19, 09:22 pm
लखनऊ [जाब्यू]। मुख्यमंत्री मायावती के बेहद विश्वासपात्र समझे जाने वाले बाबू सिंह कुशवाहा ने शनिवार को बगावती तेवर अपना लिए। उन्होंने कैबिनेट मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दीकी, कैबिनेट सचिव शशांक शेखर सिंह और प्रमुख सचिव गृह कुंवर फतेह बहादुर से अपनी जान को खतरा बता दिया है।
मुख्यमंत्री को भेजे पत्र की प्रतिलिपि उन्होंने प्रधानमंत्री, राज्यपाल, सुप्रीम कोर्ट व हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश, सीबीआइ के निदेशक व केंद्रीय गृह सचिव भेजी है। उमूमन हिंदी में खत-ओ-किताबत करने वाले कुशवाहा ने पत्र अंग्रेजी में लिखा है। कुशवाहा मायावती सरकार में कद्दावर मंत्री हुआ करते थे। एनआरएचएम में घोटाला उजागर होने के बाद इसी साल अप्रैल में मंत्रिमंडल से उनका इस्तीफा हुआ था।
यह पत्र सार्वजनिक होते ही उत्तर प्रदेश की सियासत में गर्मी बढ़ गई है। बाबू सिंह कुशवाहा जैसे विश्वासपात्र के बागी होने के राजनीतिक निहितार्थ तलाशे जा रहे हैं। कुशवाहा को इस हद जाने की हिम्मत देने के पीछे कौन हो सकता है, इसके कयास लगाए जा रहे हैं। बड़े कांग्रेसी नेता के कुशवाहा के सम्पर्क में होने की बात कही जा रही है। कुशवाहा अपने ऊपर बढ़ते शिकंजे से खासे परेशान हैं। सीबाआइ तो उनके ऊपर शिंकजा कस ही रही है, लोकायुक्त ने भी जांच शुरू कर दी है। शैक्षिक प्रमाणपत्रों में उनका नाम कुछ और होने को लेकर दायर याचिका पर कोर्ट ने आदेश जारी कर दिया है। ऐसे में वह सरकार और बसपा से अपने साथ खड़े होने की उम्मीद लगा रहे थे लेकिन बसपा और सरकार ने उनसे पूरी तरह से किनारा कर लिया।
नसीमुद्दीन सिद्दीकी से उनकी काफी समय पहले से राजनीतिक प्रतिद्वन्दि्वता चल रही है। उन्हें यह लग रहा था कि सिद्दीकी ने ही कुछ शीर्ष अफसरों के साथ 'लाबिंग' कर उन्हें किनारे कर दिया है। फिलवक्त उन्हें पार्टी और सरकार से कोई मदद नहीं मिल सकती। सूत्रों के अनुसार ऐसे में उन्होंने अपने कुछ राजनीतिक हितेषियों के जरिये कांग्रेस में सम्पर्क साधा। एक बड़े कांग्रेसी नेता ने दो टूक कह दिया कि जब तक वह बसपा और मायावती के साथ खड़े हैं, उनके साथ किसी तरह की सहानुभूति या मदद का सवाल ही नहीं खड़ा होता। ऐसे में बाबू सिंह कुशवाहा के लिए बसपा से दूरी बनाना मजबूरी हो गई।
सरकार के लिए बेचैनी की वजह यह है कि कुशवाहा ने यह कदम उस वक्त उठाया है जब एक दिन बाद ही विधानमंडल दल का सत्र शुरू होने जा रहा है। लेखानुदान के साथ-साथ विपक्ष अपने अविश्वास प्रस्ताव पर सरकार के बहुमत की परीक्षा लेने की तैयारी में है। उसकी नजर बसपा के उन विधायकों पर है जिनके टिकट कट गए हैं या कटने की सम्भावना है। ऐसे विधायकों की संख्या दो दर्जन से ऊपर बतायी जाती है। कुशवाहा की यह बगावत असंतोष की आग में घी काम कर सकती है। इसी वजह से सरकार में भी बेचैनी है।
ड्रामेबाजी कर रह हैं: बसपा
लखनऊ [जाब्यू]। बहुजन समाज पार्टी ने बाबू सिंह कुशवाहा की बगावत को ड्रामेबाजी करार दिया है। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष स्वामी प्रसाद मौर्य की ओर जारी लिखित बयान में कहा गया कि कुशवाहा काफी दिनों से पार्टी से जुड़े रहे और सरकार में कैबिनेट मंत्री भी रहे। सरकार में मंत्री रहते हुए उन्हें नसीमुद्दीन सिद्दीकी, कैबिनेट सचिव शशांक शेखर सिंह तथा प्रमुख सचिव गृह कुंवर फतेह बहादुर से जान का कोई खतरा नहीं था। कुशवाहा जब मंत्रिपरिषद से बाहर हुए तब भी काफी लम्बे समय तक इन्हें कोई खतरा नजर नहीं आया। लेकिन अचानक इन लोगों से कुशवाहा को अपनी जान का खतरा कैसे नजर आने लगा, यह आश्चर्य की बात है। प्रदेश अध्यक्ष ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि कुशवाहा जब कानून के शिकंजे में आ गए हैं तो लोगों का ध्यान हटाने के लिए ड्रामेबाजी कर रहे हैं। कुशवाहा अब न तो पार्टी के सक्रिय सदस्य हैं और न ही पार्टी के कार्यक्रम या आयोजन में इनकी कोई भूमिका ही होती है। कुण्ठाग्रस्त होकर वे बेबुनियाद आरोप लगाकर सहकर्मियों एवं शासन के वरिष्ठ अधिकारियों को बदनाम करने की घिनौनी हरकत कर रहे हैं। उनको लोकायुक्त के विचाराधीन अपने आय से अधिक मामले में हाईकोर्ट में दाखिल जनहित याचिका पर कानूनी स्थिति स्पष्ट करते हुए सहयोग करना चाहिए था।
कुशवाहा के पत्र का मूल पाठ
महोदया,
जैसा कि आप जानती हैं कि आवेदक एक सामाजिक कार्यकर्ता है जिसे 2007 में बहुजन समाज पार्टी के सत्ता में आने पर आपने ही कैबिनेट मंत्री नियुक्त किया था और परिवार कल्याण समेत विभिन्न विभागों का चार्ज सौंपा था। परिवार कल्याण विभाग के दो मुख्य चिकित्सा अधिकारियों की हत्याओं की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए आवेदक ने सात अप्रैल 2011 को कैबिनेट मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। 2007 में बसपा के सत्तारूढ़ होते ही नसीमुद्दीन सिद्दीकी जैसे कुछ प्रभावशाली मंत्री, कैबिनेट सचिव शशांक शेखर सिंह व प्रमुख सचिव गृह कुंवर फतेह बहादुर जैसे मौजूदा सरकार के कुछ च्च्च पदस्थ नौकरशाह आवेदक से सदैव ईष्र्या करते थे और व्यक्तिगत रंजिश रखते थे। अप्रैल 2011 में आवेदक के कैबिनेट से इस्तीफा देते ही यह प्रभावशाली व्यक्ति व्यक्तिगत हिसाब बराबर करने के लिए उसके खिलाफ एकजुट हो गए। आवेदक को यह आशंका है कि यह तीनों व्यक्ति उसे, रिश्तेदारों और समर्थकों को झूठे कल्पित मामलों में फंसाकर सार्वजनिक जीवन में उसकी छवि धूमिल करने के लिए अपने प्रभावशाली पद व सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग कर सकते हैं, जैसा कि बांदा और झांसी की हाल की घटनाओं से विदित हुआ है।
यह तीनों व्यक्ति आवेदक से इस हद दुश्मनी रखते हैं कि आवेदक को आशंका है कि तीनों उसके खिलाफ षड्यंत्र रच सकते हैं और उनसे उसे जान का खतरा भी है। आपसे आग्रह है कि आप इस मामले को देखें और इन तीनों को ऐसी गतिविधियों में लिप्त न होने का निर्देश दें जिससे कि आवेदक को अनावश्यक और गैरकानूनी तरीके से सार्वजनिक जीवन में बदनामी न झेलनी पड़े और उसके जीवन की रक्षा भी हो सके।
भवदीय
बाबू सिंह कुशवाहा