लोकपाल के दायरे में हो प्रधानमंत्री का पद: मायावती
रामदत्त त्रिपाठी
बीबीसी संवाददाता, लखनऊ
मंगलवार, 13 दिसंबर, 2011 को 21:20 IST तक के समाचार
उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री एवं बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती ने प्रेस कांफ्रेंस करके साफ़ कर दिया कि वह प्रधानमंत्री, निचले स्तर के कर्मचारियों और सीबीआई को लोकपाल के अधीन रखने के पक्ष में हैं.
मुख्यमंत्री मायावती और उनके मंत्रिमंडल के सदस्य स्वयं भी भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों से घिरे हैं. लेकिन प्रेस कांफ्रेंस में मायावती ने भ्रष्टाचार और राजनीति के अपराधीकरण पर गंभीर चिंता प्रकट की.
मायावती ने कहा कि उत्तर प्रदेश भी भ्रष्टाचार से अछूता नहीं है, लेकिन उनके अनुसार इसके लिए पूर्ववर्ती सरकारें और दूसरे दलों से बीएसपी में आए लोग जिम्मेदार हैं.
"खासतौर से इस किस्म के लोग जो दूसरी पार्टियों को छोड़कर बीएसपी पार्टी से जुड़ने के बाद सांसद, विधायक और सरकार बनने पर मंत्री आदि बन गए हैं उन्होंने बीएसपी में आने के बावजूद गलत कार्य करना नही छोड़ा है तो उन्हें भी उनकी सरकार ने प्रदेश और जनहित में बिना हिचक जेल की सलाखों के पीछे भेजा है और कार्रवाही की है."
मायावती
उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार तथा राजनीति में अपराधीकरण को समाप्त करने के लिए उनकी सरकार को काफी मेहनत करनी पड रही है.
मायावती ने कहा, “खासतौर से इस किस्म के लोग जो दूसरी पार्टियों को छोड़कर बीएसपी पार्टी से जुड़ने के बाद सांसद, विधायक और सरकार बनने पर मंत्री आदि बन गए हैं उन्होंने बीएसपी में आने के बावजूद गलत कार्य करना नही छोड़ा है तो उन्हें भी उनकी सरकार ने प्रदेश और जनहित में बिना हिचक जेल की सलाखों के पीछे भेजा है और कार्रवाही की है.”
कांग्रेस पर हमला
मायावती ने आरोप लगाया कि कांग्रेस पार्टी भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्यवाही के लिए मजबूत तंत्र नही बनने देना चाहती , क्योंकि उनके मंत्री भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे हैं.
मायावती ने कहा कि संसद की स्थायी समिति द्वारा लोक पाल विधेयक का जो मसौदा पेश किया है वह भ्रष्टाचार को खत्म नही कर सकेगा. उन्होंने सुझाव दिया कि चपरासी से लेकर प्रधानमन्त्री तक सभी को लोकपाल के दायरे में रखना चाहिए.
मायावती ने सीबीआई को लोकपाल के नियंत्रण में लाने पर जोर देते हुए कहा कि इससे समय-समय पर केंद्र सरकारों द्वारा किये जा रहें इसके दुरूपयोग को कुछ हद तक समाप्त किया जा सकेगा.
इसके साथ ही मायावती ने इस बात पर भी जोर दिया कि लोकपाल विधेयक को तैयार करने में संविधान का पालन किया जाए और दलित तथा अन्य पिछड़े वर्गों को आरक्षण दिया जाए.
मायावती ने एक और बात ये कही कि लोकपाल विधेयक में संविधान के संघीय ढाँचे का ध्यान जरुर रखा जाए.
लोकायुक्त पर चुप्पी
"सुश्री मायावती और बसपा सरकार प्रदेश में घोर भ्रष्टाचार और राजनीतिक अपराधीकरण के लिए स्वयं पूर्ण रूप से जिम्मेदार हैं."
रीता जोशी, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष
लेकिन मायावती ने राज्यों में लोकपाल के अधिकारों पर कोई बात नही की. याद दिला दें कि उत्तर प्रदेश में लोकायुक्त बराबर ये मांग करते रहें हैं कि मुख्यमंत्री को भी उनके अधिकार क्षेत्र में रखा जाए, लेकिन मायावती ने उस पर ध्यान नही दिया.
मायावती ने प्रेस कांफ्रेंस करके यह जता दिया कि बहुजन समाज पार्टी केंद्र की कांग्रेस सरकार को भले ही बाहर से समर्थन दे रही हो पर लोकपाल के मुद्दे पर वह अन्ना हजारे और अन्य विपक्षी दलों के करीब है.
लेकिन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रीता जोशी ने मायावती के बयान पर आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा कि, “सुश्री मायावती और बसपा सरकार प्रदेश में घोर भ्रष्टाचार और राजनीतिक अपराधीकरण के लिए स्वयं पूर्ण रूप से जिम्मेदार हैं.”
डा. जोशी ने मुख्यमंत्री के बयान को गुमराह करने वाला बताया है.
भारतीय जनता पार्टी ने अपनी प्रतिक्रिया में मायावती को 'देश की सबसे भ्रष्ट व झूठ बोलने में माहिर मुख्यमंत्री बताया'.
पार्टी प्रवक्ता हरद्वार दुबे ने आज पार्टी मुख्यालय पर संवाददाताओं से बात करते हुए मायावती द्वारा कालेधन के मामले में कांग्रेस से भाजपा की मिलीभगत के आरोप को ऐतिहासिक झूठ करार दिया है.
दुबे ने कहा कि मायावती के मुंह से भ्रष्टाचार पर बोलना शोभा नहीं देता. उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री ने राष्ट्रपति के चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी का इस शर्त पर समर्थन किया था कि पहले कांग्रेस राज्यपाल के यहां ताज काडिडोर मामले की जांच को खारिज कराए.
दुबे ने कहा कि कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी ने पहले उनकी मांग को माना तथा तत्कालीन उत्तर प्रदेश के राज्यपाल ने आकण्ठ भ्रष्टाचार में फंसी मायावती के मामले को समाप्त किया.
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दूसरी ओर-
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दूसरी ओर-
शहरी निकायों के चुनाव पर मायावती सरकार की आनाकानी
रामदत्त त्रिपाठी
बीबीसी संवाददाता, लखनऊ
बुधवार, 14 दिसंबर, 2011 को 18:29 IST तक के समाचार
74वें संविधान संशोधन के जरिए स्थानीय निकायों को संवैधानिक संरक्षण दिया गया था ताकि राज्य सरकारें इनके अधिकारों का अतिक्रमण न करें और चुनाव समय पर हो सकें.
लेकिन उत्तर प्रदेश में लगभग साढ़े छह सौ स्थानीय निकायों का कार्यकाल पिछले महीने समाप्त हो गया और मायावती सरकार ने चुनाव प्रक्रिया शुरू नहीं होने दी. हाईकोर्ट ने चुनाव अधिसूचना जारी करने का आदेश दिया भी मगर राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दाखिल कर चुनाव कराने पर फिलहाल स्टे ले लिया है.
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राज्य चुनाव आयोग के अधिकारियों का कहना है कि उन्होंने सितम्बर के पहले हफ्ते में ही चुनाव कार्यक्रम बनाकर राज्य सरकार को भेज दिया था.
नियमों में व्यवस्था है कि चुनाव की औपचारिक अधिसूचना राज्य सरकार जारी करेगी.
सरकार की आनाकानी
'हार का डर'
"ये चुनाव इसलिए नही कराना चाहतीं क्योंकि इस चुनाव में बहुजन समाज पार्टी कि बुरी तरह से हार होती. जब हार होती तो पोल खुलती. इसके बाद विधान सभा एके चुनाव होने थे,इससे चुनाव का संकेत आ जाता कि इनकी बुरी तरह से हार होगी. केवल इस डर से कि इनकी बुरी तरह हार होगी,इनकी पोल खुलेगी ये चुनाव नही कराना चाहती."
शिवपाल सिंह यादव, विधानसभा में विपक्ष के नेता
लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार कोई न कोई बहाना बनाकर चुनाव कार्यक्रम घोषित करने से कतरा रही थी. इसे देखते हुए कई लोग हाईकोर्ट गए और अदालत ने 31 अक्तूबर तक चुनाव अधिसूचना जारी करने को कहा. मगर राज्य सरकार ने उस पर अमल नही किया.
मुख्य बहाना ये बनाया गया कि वार्डों का आरक्षण नही हो पाया. दूसरा बहाना ये बनाया गया कि 2011 की जनगणना की आंकड़े उपलब्ध नही हैं.
लेकिन हाईकोर्ट ने ये बहाने नही माने. हाईकोर्ट ने बहुत ही कड़े शब्दों में आदेश दिया कि शहरी स्थानीय निकायों के चुनाव की अधिसूचना हर हालत में 19 दिसंबर तक जारी हो जाए.
हाईकोर्ट ने ये भी कहा कि अगर राज्य सरकार चुनाव अधिसूचना जारी नहीं करती तो ये एक प्रकार से संवैधानिक तंत्र की विफलता माना जाएगा और गवर्नर उस पर कार्रवाही कर सकते हैं.
लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार ने इससे पहले ही सुप्रीम कोर्ट में अपील कर दी. सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को राहत देते हुए दो महीने का और समय दे दिया. इस अंतरिम आदेश के मुताबिक़ राज्य सरकार को 11 फरवरी तक वार्डों का आरक्षण आदि करके अधिसूचना जारी करनी है.
लेकिन लगभग उसी समय विधानसभा चुनाव की प्रक्रिया शुरू होने की संभावना है. इसलिए अब ऐसा लगता है कि फिलहाल शहरी निकायों के चुनाव अभी नही हो पायेंगे.
प्रतिक्रिया
विधानसभा में विरोधी दल के नेता शिवपाल सिंह यादव का कहना है कि बहुजन समाज पार्टी अपनी पोल खुलने और हार के डर से नगरीय निकायों के चुनाव नही करवा रही है.
उन्होंने कहा, “ये चुनाव इसलिए नही कराना चाहतीं क्योंकि इस चुनाव में बहुजन समाज पार्टी कि बुरी तरह से हार होती. जब हार होती तो पोल खुलती. इसके बाद विधान सभा एके चुनाव होने थे, इससे चुनाव का संकेत आ जाता कि इनकी बुरी तरह से हार होगी. केवल इस डर से कि इनकी बुरी तरह हार होगी, इनकी पोल खुलेगी ये चुनाव नही कराना चाहती.”
कहना न होगा कि सत्तारूढ़ बहुजन समाज पार्टी मुख्य रूप से ग्रामीण क्षेत्रों की पार्टी है. इसीलिए बीएसपी ने साल 2006 में स्थानीय नगर निकाय चुनावों में हिस्सा ही नहीं लिया था. पिछले शहरी निकाय चुनावों में सबसे ज्यादा भारतीय जनता पार्टी और उसके बाद कांग्रेस और समाजवादी पार्टी को सफलता मिली थी.
सरकार में रहते हुए मायावती सरकार ने नियम बदल दिया था कि स्थानीय निकायों के चुनाव दलीय आधार पर न हों और मेयर तथा नगर पंचायतों के चेयरमैन के चुनाव सीधे जनता से न होकर सभासदों के ज़रिए हों.
गांवो की पार्टी
लेकिन विपक्ष ने आरोप लगाया कि मुख्यमंत्री मायावती सरकार का दबाव डालकर नगरीय निकायों पर कब्ज़ा करना चाहती है.जब मामला अदालत में गया तो अदालत ने बिना दलीय निशान चुनाव का नियम रद्द कर दिया.
प्रेक्षकों का कहना है कि बीएसपी सरकार ने पिछले पांच सालों में शहरी इलाकों में बिजली,पानी जैसी नागरिक सुविधाओं और अपराध नियंत्रण के मामले में कोई खास काम नही किया.
शहरी क्षेत्रों के मतदाताओं में जागरूकता और आक्रोश भी अधिक होता है.इसलिए मुख्यमंत्री मायावती नही चाहतीं कि विधान सभा चुनाव से ठीक पहले शहरी स्थानीय निकायों के चुनाव हों.
माया सरकार ने सरकारी अधिकारियों को इन निकायों का प्रशासक बना दिया,लेकिन हाईकोर्ट ने सरकार के इरादों पर पानी फेरते हुए कहा कि नए चुनाव होने तक पुराने मेयर अपने पद पर बने रहेंगे.