बुधवार, 10 अगस्त 2011

बंगले को करोड़ों की दरकार


मायावती
उत्तर प्रदेश सरकार ने मुख्यमंत्री मायावती को भूतपूर्व मुख्यमंत्री के तौर पर मिले सरकारी बंगले में निर्माण के लिए विधानसभा से 22 करोड़ से भी अधिक की अतिरिक्त धनराशि की मांग की है.
यह मांग मंगलवार को विधान सभा में वर्तमान वित्तीय वर्ष के लिए पेश अनुपूरक बजट में की गई है. सरकार ने 108 अरब से अधिक रुपयों के लिए अनुपूरक बजट पेश किया है.
मायावती को मॉल एवेन्यू इलाक़े का यह बंगला वर्ष 1995 से आबंटित है, जब वे पहली बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनी थी.
मायावती जितनी बार मुख्यमंत्री बनीं, उतनी बार 13, मॉल एवेन्यू बंगले में नया निर्माण और विस्तार होता गया और बंगले की चारदीवारी ऊँची होती गई.
इस समय बंगले की चारदीवारी लाल क़िले से भी ऊँची है. इसी बंगले के सामने दो-तीन पुराने बंगलों को तोड़कर बहुजन समाज पार्टी का कार्यालय भी बनाया गया है.

साज-सज्जा

इस बार वर्ष 2007 में सरकार बनते ही बगल का गन्ना आयुक्त कार्यालय और पीछे का एक बंगला भी ख़ाली कराकर 13, मॉल एवेन्यू में मिला लिया गया.
निर्माण में लगे कर्मचारी बताते रहते हैं कि किस तरह मायावती नए कमरे, किचेन, बाथरूम और तहखाना वगैरह बनवाती हैं और फिर उन्हें तोडकर नए सिरे से बनवाती हैं.
बंगले की साज-सज्जा में भी महंगे सामान और उपकरण लगते हैं और फिर बदले जाते हैं.
अनुपूरक अनुदान के पेज नंबर 122 में लिखा गया है कि उत्तर प्रदेश सरकार ने मायावती के बंगले के लिए इस वर्ष आकस्मि निधि से उधार लेकर 20 करोड़ रूपए से अधिक ख़र्च कर दिए हैं.

अब आकस्मि निधि में यह धन वापस करने के लिए सरकार विधान सभा से मोहर लगवाना चाहती है. यह भी कहा गया कि इस बंगले में विभिन्न कार्यों के लिए दो करोड़ 37 लाख रुपयों की और आवश्यकता है.

विपक्ष के नेता शिवपाल सिंह यादव का कहना है कि अब तक इस बंगले पर 150 करोड़ रूपए ख़र्च हो चुके हैं.
इसके अलावा अनुपूरक बजट में मुख्यमंत्री की सुरक्षा के लिए अतिरिक्त कारें और सिग्नल जैमर ख़रीदने के लिए भी 26 करोड़ रुपयों की मांग की गई है.

सुरक्षा

मायावती अपनी सुरक्षा को लेकर बहुत चिंतित रहती हैं. उन्होंने सचिवालय एनेक्सी मुख्यमंत्री कार्यालय में जाने के लिए पीछे से एक अलग रास्ता बनवाया है. जब वह शहर में निकलती हैं बड़ी तादाद में पुलिस तैनात होती है.
उनके साथ क़रीब दो दर्जन गाड़ियां और एम्बुलेंस वगैरह चलती है. मायावती के प्रिय स्मारकों के निर्माण और रख-रखाव के लिए भी और धनराशि की मांग अनुपूरक बजट में की गई है.
इनमें गोमती तट पर निर्माणाधीन 32 करोड रूपए और कांशीराम इको गार्डन के लिए अतिरिक्त 41 करोड़ रूपए की मांग की गई है. याद दिला दें कि मायावती के प्रिय स्मारकों और मूर्तियों आदि पर कई हज़ार करोड़ रूपए ख़र्च हो चुके हैं. इन स्मारकों के 161 करोड़ रुपयों के कार्पस की व्यवस्था पहले से है.
विधान सभा में नेता विरोधी दल शिवपाल सिंह यादव और कांग्रेस नेता प्रमोद तिवारी ने इन सब कार्यों को फ़िजूलख़र्ची और जनता के पैसे का दुरूपयोग बताया है.
लेकिन सबको मालूम है कि मायावती विपक्ष की आलोचनाओं की परवाह नही करती.
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बहन मायावती ज़ी उत्तर प्रदेश की शासिका हैं उनके आवास पर क्या खर्च हो रहा है यह खबर तो होनी ही नहीं चाहिए, सोनिया के इलाज पर कितना खर्च हो रहा है इसपर रामदत्त ज़ी को याद नहीं आता है. लेकिन उन्हें बहन ज़ी का दो चार हज़ार करोड़ क्या होता है पर नज़र नहीं डालनी चाहिए, करोड़ों अरबों की संपत्ति से जब सवर्ण अपने महल बना रहा था या होता है तो किसी का ध्यान नहीं जाता है. लोक तंत्र में दलितों की ही संपत्ति दिखाई देती है. 
जब भाई जी कहीं से भी ईमानदार नहीं हैं, बहन मायावती से उनका स्नेह है या पूर्वजन्म का कोई ताल्लुक क्योंकि जैसे ही भाई शिवपाल मुहं खोलते हैं वैसे ही यह मान लिया जाता है की यह जरूर ईर्ष्यावश कह रहे हैं या कह रहे होंगें. यदि यही बात कोई अन्य व्यक्ति कहता जो भाई शिवपाल ज़ी की छवि से मेल नहीं खाता तो एक बड़ी खबर होती.  
    (यद्यपि श्री शिवपाल यादव यह कहने का हक नहीं रखते की मायावती जी या मायावती के आवास पर कितना खर्च हो रहा है.यह बात यहीं पर ख़तम नहीं होती बल्कि कई सवाल अनुतारित्त रह जाते हैं क्योंकि भाई शिवपाल नैतिक रूप से इमानदार नहीं हैं)
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    साभार बी बी सी से

रविवार, 7 अगस्त 2011

रेल टिकट आरक्षण में 'घोटाला'



भारतीय रेलवे
महालेखाकार ने आम रेलवे यात्रियों के अंदेशों की पुष्टि कर दी है
भारत के नियंत्रक और महालेखाकार ने शुक्रवार को संसद में पेश अपनी रिपोर्ट में कहा है कि रेलवे कर्मचारियों और दलालों का गठजोड़ तत्काल कोटे में मिलने वाली टिकटों में भारी धांधली करता है.
महालेखाकार ने भारतीय रेलवे की कंप्यूटराइज्ड तत्काल और अग्रिम आरक्षण सुविधा की जाँच करने पर पाया कि जिन आम ज़रूरतमंद यात्रियों की सुविधा के लिए यह सेवा बनी है वो इस घोटालेबाज़ी के कारण इसका पूरा लाभ नहीं ले पाते.
उल्लेखनीय है कि रेलवे की इंटरनेट आरक्षण सुविधा के ज़रिए हर दिन लाखों टिकटें बुक होती हैं.
यात्री हमेशा टिकटें न मिलने की शिकायत करते हैं जबकि रेलवे के अधिकारी कहते रहे हैं कि इंटरनेट पर आरक्षण सुविधा पारदर्शी है.

शिकायत पर मुहर

जांच में पाया गया कि टिकट खिड़की खुलने के चंद ही मिनटों में तत्काल कोटे की सभी टिकटें खत्म हो जाती हैं
महालेखाकार की रिपोर्ट
महालेखाकार ने संसद में पेश अपनी रिपोर्ट में कहा है," जांच में पाया गया कि टिकट खिड़की खुलने के चंद ही मिनटों में तत्काल कोटे की सभी टिकटें खत्म हो जाती हैं."
भारतीय ट्रेनों में यात्रा करने वाले आम यात्री लम्बे समय से रेलवे कर्मचारियों और दलालों की मिलीभगत की शिकायत कर रहे हैं लेकिन यह पहली बार हुआ है कि किसी गंभीर राष्ट्रीय एजेंसी ने इस शिकायत पर मुहर लगाई है.
अपनी जांच में महालेखाकार ने पाया कि ठीक सुबह आठ बजे जब तत्काल टिकट की बुकिंग कंप्यूटर पर खुलती है तभी बुकिंग कंप्यूटर हैंग हो जाते हैं. जब तक यात्री लॉगइन करता है तब तक सभी टिकटें ख़त्म हो जाती हैं.
रिपोर्ट में साफ़ कहा गया है,"चार पांच मिनट में ही तत्काल कोटे की सभी टिकटें ख़त्म हो जाती हैं."
पहले भारतीय रेल में तत्काल कोटे की टिकट का आरक्षण यात्रा का दिन छोड़ कर पांच दिन पहले शुरू होता था जो बाद में घटा कर दो दिन कर दिया गया.
तत्काल कोटे की टिकटें इंटरनेट पर सुबह आठ बजे से शाम आठ बजे तक बुक की जा सकती हैं.
अवकाश वाले दिनों में यह सुविधा केवल सुबह आठ से दोपहर दो बजे तक ही उपलब्ध होती है.
(साभार बीबीसी हिंदी)

'यूपी में स्मारकों पर अतिरिक्त ख़र्च हुआ'


स्मारक
सीएजी के अनुसार उत्तर प्रदेश सरकार ने दो स्मारकों पर ज़रुरत से अधिक ख़र्च किया.
भारत के नियंत्रक और महालेखाकार ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि उत्तर प्रदेश सरकार ने अपने दो प्रोजेक्टों में 66 करोड़ रुपए ज़रुरत से अधिक ख़र्च किए हैं.
ये दो परियोजनाएं हैं लखनऊ स्थित भीमराव अंबेडकर सामाजिक परिवर्तन स्थल और मान्यवर कांशी राम स्मारक स्थल.
इन्हें बनवाने का जिम्मा राजकीय निर्माण निगम के पास था. महालेखाकार ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि इन परियोजनाओं के लिए 15 करोड़ रुपए में राजस्थान से पत्थर मंगवाए और फिर उन्हें वापस राजस्थान भेजा गया.
इसके अलावा परियोजनाओं के ठेकों में संशोधन कर भी सरकार ने 22 करोड़ रुपए का टाला जा सकने वाला ख़र्च किया.
इस रिपोर्ट के शुक्रवार को उत्तर प्रदेश विधान सभा में रखा गया है.

टाला जा सकने वाला ख़र्च

स्मारक
सीएजी के अनुसार चुनार के पत्थरों को राजस्थान भेजना और वहां से वापस लखनऊ लाना ग़ैर-ज़रुरी था.
रिपोर्ट में कहा गया है कि इन दोनों परियोजनाओं के लिए शुरू में 881.22 करोड़ रुपए का बजट था. इसमें से भीमराव अंबेडकर सामाजिक परिवर्तन स्थल के 366.82 करोड़ रुपए और मान्यवक कांशीराम स्मारक स्थल के लिए 514.4 करोड़ का बजट था.
लेकिन 31 दिसंबर 2009 को ये ख़र्च 2451.93 करोड़ तक पहुंच गया.
रिपोर्ट में कहा गया है कि इसमें 2261.19 करोड़ रुपए नवंबर 2007 से दिसंबर 2009 के बीच जारी किए गए.
नियंत्रक और महालेखाकार की रिपोर्ट में कहा गया है कि इन दोनों परियोजनाओं के लिए मिर्ज़ापुर के चुनार से पत्थर राजस्थान के बयाना में ले जाए गए जहां उनपर कारीगरी करने के बाद उन्हें वापस लखनऊ लाया गया.
रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर मिर्ज़ापुर के चुनार में ही पत्थरों को तराशा जाता तो 15.6 करोड़ रुपए बच जाते.

रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि राजकीय निर्माण निगम ने कुछ काम ऊंची कीमतों पर करवाए जिसके चलते कई करोड़ रुपए अधिक ख़र्चा हुए.
(साभार बीबीसी हिंदी)