चार साल में 300 करोड़ के मालिक बने रॉबर्ट वाड्रा | |||
नई दिल्ली/अमर उजाला ब्यूरो | |||
Story Update : Saturday, October 06, 2012 12:25 AM | |||
आंदोलन के रास्ते राजनीति में जगह बनाने की कोशिश कर रहे अरविंद केजरीवाल ने प्रियंका गांधी के पति रॉबर्ट वाड्रा पर सनसनीखेज आरोप लगाए हैं। केजरीवाल ने कहा है कि वाड्रा ने करीब चार साल में 300 करोड़ रुपये की संपत्ति बना ली। उन्होंने कहा कि 2007 से लेकर 2010 तक वाड्रा की संपत्ति 50 लाख से बढ़कर 300 करोड़ रुपये हो गई, जबकि उनकी आय का एकमात्र जरिया डीएलएफ से मिला ब्याज मुक्त 65 करोड़ रुपये का लोन था। केजरीवाल के इन आरोपों से सियासी तूफान खड़ा हो गया है। कांग्रेस ने जहां इन आरोपों को निराधार और गैर जिम्मेदाराना करार देकर खारिज किया है, वहीं भाजपा ने आरोपों की जांच कराने की मांग कर दी है।
शुक्रवार शाम मीडिया से रूबरू अरविंद केजरीवाल और उनके सहयोगी जानेमाने वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि पिछले चार साल में वाड्रा ने एक के बाद एक 31 संपत्तियां खरीदीं, जिसमें से ज्यादातर कांग्रेस शासित दिल्ली, हरियाणा और राजस्थान में हैं। उन्होंने कहा कि 2007 में वाड्रा की पांच कंपनियों की कुल पूंजी 50 लाख रुपये थी। 2010 में इनकी संपत्ति 300 करोड़ रुपये हो गई। खास बात यह कि इस बीच कंपनियों की व्यावसायिक गतिविधियां न के बराबर रहीं। वाड्रा की संपत्ति बढ़ाने में डीएलएफ से मिले बिना गारंटी और ब्याज के लोन और डीएलएफ ने अहम भूमिका निभाई। केजरीवाल और भूषण के मुताबिक कम कीमत पर संपत्ति का बड़ा हिस्सा डीएलएफ से खरीदा गया है। इसमें गुड़गांव के मैग्नोलिया अपार्टमेंट के 7 फ्लैट सिर्फ 5.2 करोड़ में खरीदे गए, जबकि उस वक्त भी एक फ्लैट की कीमत 35 से 70 करोड़ रुपये थी, जबकि मौजूदा कीमत 105 से 117 करोड़ रुपये है। इसी तरह गुड़गांव के एक अन्य फ्लैट की कीमत 89 लाख दिखाई गई है, जबकि उस वक्त इसकी कीमत करीब 20 करोड़ रुपये थी। उन्होंने सवाल किया कि डीएलएफ ने 65 करोड़ रुपये का लोन क्यों दिया और वाड्रा के लिए संपत्ति की कीमत बाजार भाव से कम कीमत क्यों रखी गई? उन्होंने इसकी निष्पक्ष जांच की मांग भी की। उन्होंने आरोप लगाया कि वाड्रा को संपत्ति इतनी सस्ती मिलने के पीछे हो सकता है कि राज्यों की कांग्रेस सरकारों ने डीएलएफ को लाभ दिया हो। उन्होंने दावा किया कि वाड्रा की इन संपत्तियों का बाजार भाव 500 करोड़ रुपये के करीब है। केजरीवाल के सवाल 1. चार साल में वाड्रा की संपत्ति 50 लाख से 300 करोड़ रुपये कैसे हो गई? 2. डीएलएफ ने 65 करोड़ का लोन बिना ब्याज क्यों दिया? 3. 7 फ्लैट सिर्फ 5.2 करोड़ में कैसे खरीदे, जबकिउस वक्त एक-एक फ्लैट की कीमत 35 से 70 करोड़ थी? 4. 20 करोड़ का फ्लैट 89 लाख में कैसे मिल गया? केजरीवाल के आरोप आधारहीन और गैर जिम्मेदाराना हैं। कथित सिविल सोसाइटी समूह खुद को राजनीतिक दल में बदलने की कोशिश कर रहा है, लेकिन यह भाजपा की बी-टीम से ज्यादा कुछ नहीं है। मनीष तिवारी, कांग्रेस वाड्रा के साथ कारोबारी संबंध पूरी तरह पारदर्शी थे। इनमें नैतिकता के उच्च मूल्यों का पालन किया गया। डीएलएफ प्रवक्ता कांग्रेस अध्यक्ष के दामाद को फायदा दिलाने के लिए कांग्रेस सरकारों ने एनसीआर में बहुत सारी जमीन डीएलएफ को दे दी। यदि डीएलएफ ने संपत्ति सस्ते दामों पर देकर वाड्रा के लिए चैरिटी की तो उसे अन्य लोगों के साथ भी ऐसा ही करना चाहिए। रविशंकर प्रसाद, भाजपा हमने किसी को फायदा नहीं दिया। पारदर्शी तरीके से हुई नीलामी में सबसे ज्यादा ऊंची बोली लगाने वाले को ही जमीन आवंटित की गई है। भूपेंद्र सिंह हुड्डा, हरियाणा के सीएम ........... सोनिया गाँधी के दामाद ने ली रिश्वत: केजरीवाल
शुक्रवार, 5 अक्तूबर, 2012 को 19:43 IST तक के समाचार
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भारत में सबसे बड़ी समस्या ये है कि जितना अधिक हम बदलाव की चर्चा करते हैं चीज़ें उतनी ही अधिक पहले जैसी रह जाती हैं.
चुनाव सुधारों और पार्टी व्यवस्था में पारदर्शिता को लेकर लंबे समय से चर्चा जारी है लेकिन चुनावी खर्च पर नज़र रखने वाली संस्था एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स के एक ताज़ा अध्ययन के मुताबिक भारत की लगभग सभी राजनीतिक पार्टियों को मिलने वाले फंड और उनकी आमदनी के लेखेजोखे में अब भी काफी घालमेल है.
भारत में राजनीतिक पार्टियों के लिए 20,000 से ज्यादा के चंदे की सभी जानकारियां चुनाव आयोग को सौंपना ज़रूरी है. इसके आधार पर वो कर में छूट के लिए भी आवेदन दे सकते हैं. लेकिन यह तभी संभव है जब पार्टियां अपने खर्च और कमाई का पूरा लेखाजोखा उपलब्ध कराएं.
सूचना के अधिकार के ज़रिए निकाली गई जानकारी के मुताबिक इस निगरानी संस्था ने 2003 से 2011 के बीच छह राष्ट्रीय पार्टियों और 36 क्षेत्रीय पार्टियों से उनके धन का ब्यौरा मांगा.
"मुमकिन है कि ज्यादातर लोग चंदे में ‘काला धन’ देते हैं जिस पर वो कोई कर नहीं देते. लगता है वही लोग पार्टियों को चंदा दे रहे हैं जो गलत तरीकों से पैसा कमाते हैं और उस पर कर नहीं देते. "
संस्था से जुड़े जगदीप छोकर
जवाब में जो तथ्य सामने आए वो चौंकाने वाले थे.
- सबसे बड़ी पांच पार्टियों ने 2004 से 2011 के बीच चंदे और आर्थिक सहयोग से लगभग 39 अरब रुपए की कमाई की.
- इस तरह की कमाई में सबसे ऊपर है सत्तारुढ़ कांग्रेस पार्टी जिसके बाद भारतीय जनता पार्टी का नंबर आता है. इस सूची में बहुजन समाज पार्टी यहां तक कि मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी भी शामिल है.सबसे चौंकाने वाली बात ये कि इस धन का 20 फीसदी से भी कम हिस्सा आधिकारिक रुप से सार्वजनिक किया गया है.
- साल 2009 से 2011 के बीच कांग्रेस ने अपने धन का केवल 11.89 फीसदी और भाजपा ने अपनी कमाई के केवल 22.76 फीसदी हिस्से के बारे में जानकारी साझा की.
- वहीं मायावती के नेतृत्व वाली बहुजन समाज पार्टी का कहना है कि उसे 2009-2010 के बीच 20,000 रुपए से ज्यादा का चंदा नहीं मिला. हालांकि इस दौरान पार्टी की कमाई का ब्यौरा एक अरब 60 लाख से ज्यादा है.
- सीपीआई एकमात्र ऐसी पार्टी है जिसने अपनी कमाई के 57 फीसदी हिस्से का ब्यौरा सार्वजनिक किया है.
ज़ाहिर है राजनीतिक पार्टियां अगर अपनी कमाई का 80 फीसदी हिस्सा सार्वजनिक नहीं कर रहीं तो दाल में ज़रूर कुछ काला है.
निगरानी संस्था से जुड़े जगदीप छोकर का मानना है कि ज्यादातर लोग चंदे में ‘काला धन’ देते हैं जिस पर वो कोई कर नहीं देते. मुमकिन है कि वही लोग पार्टियों को चंदा दे रहे हैं जो गलत तरीकों से पैसा कमाते हैं और उस पर कर नहीं देते.
पार्टियों को दिए जाने वाले पैसे के सवाल पर ई श्रीधरन और राजीव गौडा जैसे विचारकों का कहना है कि इसकी एक बड़ी वजह पार्टी फंड पर कर चुकाने पर मिलने वाले प्रोत्साहनों में कमी भी हो सकती है.
ज़ाहिर है भारत में राजनीतिक पार्टियों के चंदे को लेकर कई तरह के सुधारों की ज़रूरत है. पार्टिंया अगर छोटे सहयोगियों से पैसे लें तो इससे ये प्रक्रिया लोकतांत्रिक होगी और पैसे का लेखाजोखा रखना आसान किया जा सकेगा.