रविवार, 8 मई 2011

जमीन ले रहो हो 'किसके लिए'

डॉ.लाल रत्नाकर 

किसानों को  क्या दे रहो हो 
उनकी जमीन ले रहो हो 'किसके लिए'

अपने और अपने दलालों के लिए 
पिछले दिनों इसी तरह से जमीन लेकर 

एक सरकार ने एक उद्योगपति को 
उपहार में दिया था की ये बिजली बनायेंगे 

शहर को जगमगाने और 
किसान को गहरी नींद सुलाने के लिए 

अब तो रूक जाओ इन्ही गाँव वालों ने 
तुम्हे सत्ता दी है, ये भोले हैं इन्हें और भोला मत बनाओ 

जब ये समझेंगे की अब इनकी बारी है
तब इनको गुस्सा आएगा पर ये नहीं जानते 

किसानों के बेटे ही इनको भुनने के लिए 
हथियार उठाकर ये किसानों पर गोली चलाएंगे 

क्योंकि इन्होने भर्तियों में जमीन से मिली राशि
घूस देकर सरकारी जिम्मेदारी पाई है 

अगर इन्होने बगावत कर दी तो इन्हें डर है
की इन्हें निकाल दिया गया तो पेट चलाना होगा मुश्किल 

अतः वो और थे जो कानून को हाथ नहीं लेते थे 
जरूरत होती थी तो बागी भी हो जाते थे जमीर की वजह 

आईये विचार करें 'भ्रष्टाचार' कहाँ से आया है 
किसान की खेती योग्य ज़मीन को माटी के मोल

किसानों से लेकर सोने और हीरे के भाव सरकार 
बिल्डर और उद्योगपति बेचेंगे क्यों ! भ्रष्टाचार का ये खेल 

किसके इशारे पर किनके लिए रचा गया है 
इसमे बि-चारा किसान ही मारा जाता है क्योंकि सदियों 

सदियों उसने माटी को दुहा है, इसका हिसाब लगाकर
सरकार में बैठी मशीनरी ने उसे कुछ देकर बे-दखल करने का 

योजनाबद्ध तरीके से तिकरम किया हैं 
किसान मरे और सिपाही मरे पर क्या सत्ता में बैठा 

अफसर दलाल या नेता भी कभी मरा है 
विकास तो पूरी दुनिया में हुआ है इसी तरह से 

पर क्या उद्योगपतियों में से भी कोई मरा है...................  
भ्रष्टाचार की गंगा को यमुना में या से मिलाने का जो खेल 

रचा है इससे किसका विकास होगा और किसका विनाश 
यह कौन बताये की किसान का नहीं 'भ्रष्टाचार' बढाकर दौलत कमाने का 

हथियार !
'भ्रष्टाचार' करके सरकारी भूखे नंगों की सोची समझी साजिश है   
तो जमीन ले रहे हो इनके लिए.    

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