रविवार, 30 सितंबर 2012

‘पार्टी फंड की दाल में काला ही काला'


‘पार्टी फंड की दाल में काला ही काला'

 रविवार, 30 सितंबर, 2012 को 15:22 IST तक के समाचार
भारत में सबसे बड़ी समस्या ये है कि जितना अधिक हम बदलाव की चर्चा करते हैं चीज़ें उतनी ही अधिक पहले जैसी रह जाती हैं.
चुनाव सुधारों और पार्टी व्यवस्था में पारदर्शिता को लेकर लंबे समय से चर्चा जारी है लेकिन चुनावी खर्च पर नज़र रखने वाली संस्था एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स के एक ताज़ा अध्ययन के मुताबिक भारत की लगभग सभी राजनीतिक पार्टियों को मिलने वाले फंड और उनकी आमदनी के लेखेजोखे में अब भी काफी घालमेल है.
भारत में राजनीतिक पार्टियों के लिए 20,000 से ज्यादा के चंदे की सभी जानकारियां चुनाव आयोग को सौंपना ज़रूरी है. इसके आधार पर वो कर में छूट के लिए भी आवेदन दे सकते हैं. लेकिन यह तभी संभव है जब पार्टियां अपने खर्च और कमाई का पूरा लेखाजोखा उपलब्ध कराएं.
सूचना के अधिकार के ज़रिए निकाली गई जानकारी के मुताबिक इस निगरानी संस्था ने 2003 से 2011 के बीच छह राष्ट्रीय पार्टियों और 36 क्षेत्रीय पार्टियों से उनके धन का ब्यौरा मांगा.
"मुमकिन है कि ज्यादातर लोग चंदे में ‘काला धन’ देते हैं जिस पर वो कोई कर नहीं देते. लगता है वही लोग पार्टियों को चंदा दे रहे हैं जो गलत तरीकों से पैसा कमाते हैं और उस पर कर नहीं देते. "
संस्था से जुड़े जगदीप छोकर
जवाब में जो तथ्य सामने आए वो चौंकाने वाले थे.
  • सबसे बड़ी पांच पार्टियों ने 2004 से 2011 के बीच चंदे और आर्थिक सहयोग से लगभग 39 अरब रुपए की कमाई की.
  • इस तरह की कमाई में सबसे ऊपर है सत्तारुढ़ कांग्रेस पार्टी जिसके बाद भारतीय जनता पार्टी का नंबर आता है. इस सूची में बहुजन समाज पार्टी यहां तक कि मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी भी शामिल है.सबसे चौंकाने वाली बात ये कि इस धन का 20 फीसदी से भी कम हिस्सा आधिकारिक रुप से सार्वजनिक किया गया है.
  • साल 2009 से 2011 के बीच कांग्रेस ने अपने धन का केवल 11.89 फीसदी और भाजपा ने अपनी कमाई के केवल 22.76 फीसदी हिस्से के बारे में जानकारी साझा की.
  • वहीं मायावती के नेतृत्व वाली बहुजन समाज पार्टी का कहना है कि उसे 2009-2010 के बीच 20,000 रुपए से ज्यादा का चंदा नहीं मिला. हालांकि इस दौरान पार्टी की कमाई का ब्यौरा एक अरब 60 लाख से ज्यादा है.
  • सीपीआई एकमात्र ऐसी पार्टी है जिसने अपनी कमाई के 57 फीसदी हिस्से का ब्यौरा सार्वजनिक किया है.
ज़ाहिर है राजनीतिक पार्टियां अगर अपनी कमाई का 80 फीसदी हिस्सा सार्वजनिक नहीं कर रहीं तो दाल में ज़रूर कुछ काला है.
निगरानी संस्था से जुड़े जगदीप छोकर का मानना है कि ज्यादातर लोग चंदे में ‘काला धन’ देते हैं जिस पर वो कोई कर नहीं देते. मुमकिन है कि वही लोग पार्टियों को चंदा दे रहे हैं जो गलत तरीकों से पैसा कमाते हैं और उस पर कर नहीं देते.
पार्टियों को दिए जाने वाले पैसे के सवाल पर ई श्रीधरन और राजीव गौडा जैसे विचारकों का कहना है कि इसकी एक बड़ी वजह पार्टी फंड पर कर चुकाने पर मिलने वाले प्रोत्साहनों में कमी भी हो सकती है.
ज़ाहिर है भारत में राजनीतिक पार्टियों के चंदे को लेकर कई तरह के सुधारों की ज़रूरत है. पार्टिंया अगर छोटे सहयोगियों से पैसे लें तो इससे ये प्रक्रिया लोकतांत्रिक होगी और पैसे का लेखाजोखा रखना आसान किया जा सकेगा.

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