शुक्रवार, 29 अप्रैल 2011

प्रतिभाओं की चिता जलाने की तरकीबें बना रहा है !!



(डॉ.लाल रत्नाकर)

मुर्दे लिखते हों जहाँ जिन्दों की तकदीर
ऐसी हालत हो गई आज जरा गंभीर
कुछ हो पर इस देश में
भ्रष्ट ही बड़ा रहेगा
ऐसा करता औ कहता है मुर्दों का सरदार
मुर्दों का सरदार बनाता है अपना कानून
संबिधान, कानून को समझाता है
ये सब उसकी चेरी हैं.
भूखों नंगों से लेता है
जम करके वह घूस
और वही रक्षक है उसका
कलजुग की ये रित
नियति वियति सब खोटी करके
केवल गोटी डाल रहे है
मुर्दे पर मडराते कौवे, चिल और कुत्ते
सबके सब ये ताक रहे हैं
मेरा हिस्सा तेरा हिस्सा क्या
सचमुच ये नियति से बाट रहे हैं.
नियम उवम से इनका कोई
लेना औ देना नहीं
ये तो केवल और केवल
अपना अपना नाप रहे हैं
लूट पाट का हिस्सा मुर्दे के पीछे
आगे अपनों के बाँट रहे हैं
'संत' बने फिरते थे जो
वो भी जूठन चाट रहे हैं.
मुर्दे के आगे आगे अंधे की लाठी
बनकर वह सारी धरती नाप रहे हैं
'संत' बने फिरते थे जो
वो भी जूठन चाट रहे हैं.
यहाँ जाती है, क्षेत्र यहाँ है
गोत्र और सगोत्र यहाँ है
संस्कार का झंडा लेकर
अंडा उनसब पर फेंक रहा है
जो उसके मुर्दा होने पर
जीवन उसमें डाल सकेंगे
पर गुंडों के हथकंडे आकर
मुर्दा भी रंग बघार रहा है
दुष्प्रचार के भांट बुलाकर
खिल्ली उनकी उड़ा रहा है.
प्रतिभाओं की चिता जलाने
की तरकीबें बना रहा है
दोहरे और दोगले मिलकर
कंधे पर लादे लादे
सहानभूति के वोट बटोर कर
सीना अपना तन रहे हैं
जनता है बे चैन मगर
मन ही मन सब कोस रहे हैं
गलती कर दी, अब न करेंगे
सहानभूति के वोट
या डरकर लूटने की खातिर
ये दे देंगे फिर ये अपना वोट
तब गुंडों के हथकंडे आकर
मुर्दा भी रंग बघार रहा है
दुष्प्रचार के भांट बुलाकर
खिल्ली उनकी उड़ा रहा है.
प्रतिभाओं की चिता जलाने
की तरकीबें बना रहा है !!


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